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कोरोना के दौरान नए सुरक्षा नियमों ने गंभीर स्ट्रोक के मरीज की जान बचाई

सब केटगॉरी : सेहत  Oct,05,2020 12:57:27 PM
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कोरोना के दौरान नए सुरक्षा नियमों ने गंभीर स्ट्रोक के मरीज की जान बचाई

नई दिल्ली: चूंकि स्ट्रोक के सफल इलाज के लिए समय पर हस्तक्षेप जरूरी है, कोविड महामारी हेल्थकेयर सिस्टम में एक बड़े बदलाव का कारण बनी। मरीजों और उनके परिवारों को यही डर रहता है कि कहीं अस्पताल में वे वायरस की चपेट में न आ जाएं, जिसके कारण वे इंमरजेंसी पहुंचने में देर कर देते हैं।

दरअसल, आपातकालीन उपचार में देरी न सिर्फ स्थायी विकलांगता का कारण बनती है बल्कि घातक भी साबित हो सकती है। इसके अलावा, यदि किसी मरीज को कोरोना है लेकिन उसके कोई लक्षण नहीं नज़र आ रहे हैं, तो ऐसे में डॉक्टरों के लिए समय पर उचित इलाज करना मुश्किल हो जाता है। वहीं अन्य मरीजों और डॉक्टरों की सुरक्षा का ख्याल भी रखना जरूरी होता है। इन सभी बातों का ख्याल रखते हुए, आर्टमिस अग्रिम इंस्टीट्यूट ऑफ न्यूरोसाइंसेस ने कई नए कारगर प्रोटोकॉल्स बनाएं हैं जो सभी की सुरक्षा को सुनिश्चित करते हैं।

आर्टमिस अस्पताल के आर्टमिस-अग्रिम इंस्टीट्यूट फॉर न्यूरोसाइंसेस में स्ट्रोक यूनिट के सह-निदेशक और न्यूरोइंटरवेंशन निदेशक, डॉक्टर विपुल गुप्ता ने बताया कि, मस्तिष्क में ब्लीडिंग के कारण स्ट्रोक का आपातकालीन उपचार जरूरी होता है। ऐसा नहीं करने पर परिणाम घातक हो सकते हैं। समय पर इलाज न मिलने पर कई मरीजों में स्थायी कमज़ोरी या अन्य गंभीर समस्याएं हो जाती हैं। शुक्र है, थ्रोमबोसिस और मैकेनिकल थ्रोम्बेक्टॉमी की प्रक्रिया के साथ, ब्लॉकेज को हटाकर मस्तिष्क को सामान्य स्थिति में लाया जाता है जिसकी मदद से कई मरीजों का जीवन फिर से सामान्य हो जाता है। हालांकि, स्ट्रोक के बाद उचित परिणामों के लिए इन प्रक्रियाओं को जल्द से जल्द करना आवश्यक है। ऐसे मुश्किल समय में, हमारी टीम ने सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए और अंतरर्राष्ट्रीय दिशा-निर्देशों के साथ स्ट्रोक के कई मरीजों का समय पर इलाज किया है।

हाल ही में स्ट्रोक ग्रस्त 84 वर्षीय महिला का आर्टमिस अस्पताल में सफलतापूर्वक इलाज किया गया है। यह मामला सुरक्षित वातावरण में समय पर उचित इलाज के महत्व को दर्शाता है। मरीज को अस्पताल की इमरजेंसी में शरीर के बाएं हिस्से में पैरालिसिस की समस्या के साथ भर्ती किया गया था। सुरक्षा प्रोटोकॉल को ध्यान में रखते हुए मरीज को मास्क पहनाया गया, जो वायरस से बचाव में एक अहम भूमिका निभाता है।

मरीज की समय पर उचित जांच के लिए इमरजेंसी टीम ने अपनी और मरीज की सुरक्षा के लिए पीपीई किट, मास्क और अन्य सुरक्षा प्रोटोकॉल्स का उपयोग किया। इमरजेंसी के आइसोलेशन रूम में फुर्ती से स्थिति का मूल्यांकन किया गया, जिसके बाद उसे सीटी और एमआर के लिए तुरंत एक खाली कॉरिडोर से ले जाया गया, जिसे ग्रे कॉरिडोर’ कहा जाता है। मरीज के जाने के बाद इस कॉरिडोर को फिर से कीटाणुरहित करने के लिए उसकी सफाई की जाती है।

सीटी और एमआर रिपोर्ट से पता चला कि मरीज के मस्तिष्क की बाईं ओर की रक्त वाहिकाएं ब्लॉक हो गई थीं, जिन्हें तुरंत खोलना जरूरी था। ऐसा न करने पर मरीज स्थायी रूप से पैरासिस का शिकार हो सकती थी। मरीज को तुरंत डीएसए कैथ लैब में ले जाया गया, जहां वायरस से बचाव के लिए एसी में फिल्टर लगे हुए थे। एन95 फिल्टर वाला मास्क पहन कर डॉक्टरों ने तुरंत मरीज के पैर की रक्त वाहिकाओं से लेकर मस्तिष्क तक जाने वाली केरोटिड आर्टरी में एक ट्यूब डाली। एक छोटी ट्यूब को वहां से मस्तिष्क में ले जाया गया और स्टेंट रिट्रीवर नाम के उपकरण की मदद से क्लॉट को जल्द ही निकाल दिया गया। इसके बाद मस्तिष्क का रक्त प्रवाह फिर से सामान्य हो गया। कुछ ही घंटों में मरीज पूरी तरह ठीक हो गई और कुछ ही दिनों में वह चलने भी लगी।

कैथ लैब में मरीज और स्टाफ के बीच उपयुक्त दूरी बनाए रखने के लिए मरीज के रेड ज़ोन के पास एक एक अलग ज़ोन बना हुआ था जिसमें कुछ डॉक्टर मौजूद थे। यहां तक कि एनेस्थीसिया टीम भी इस ज़ोन से बाहर रहती है, जिससे इलाज की प्रक्रिया पूरी सुरक्षा के साथ तेज गति में पूरी हो पाती है। यदि मरीज में ट्यूब डालने की जरूरत पड़ती है तो एनेस्थीसिया की टीम ने इसके लिए भी एक नया विकल्प निकाल लिया है। इंट्यूबेशन के लिए डॉक्टर को मरीज के काफी करीब जाना पड़ता है इसलिए वायरस से बचाव के लिए डॉक्टर चेहरे पर एक प्लास्टिक कवर वाला फ्रेम पहनता है। प्रक्रिया को जल्दी पूरा करने के साथ सोशल डिस्टेंसिंग बनाए रखने के लिए एनेस्थेटिक्स वीडियो लैरिंगोस्कोपी का भी इस्तेमाल करता है।

डॉक्टर विपुल गुप्ता ने अधिक जानकारी देते हुए कहा कि, स्ट्रोक के दौरान मरीज की जान बचाने के लिए समय पर इलाज करना जरूरी होता है। ऐसे में पूरी प्रक्रिया के दौरान सुरक्षा संबंधी दिशा-निर्देशों का भी अच्छे से पालन किया गया। निदान के बाद मरीज का कोविड टेस्ट किया गया और निगेटिव रिपोर्ट आने तक उसे आईसीयू के आइसोलेशन रूम में रखा गया। आर्टमिस-अग्रिम इंस्टीट्यूट एक्यूट स्ट्रोक प्रोग्राम के लिए एक जाना-माना केंद्र है, जिसमें स्टेंडर्ड ऑपरेटिंग प्रोसीजर्स (एसओपीस) का पालन करते हुए मरीज व डॉक्टरों की सुरक्षा का पूरा ख्याल रखा जाता है।

डॉक्टर विपुल गुप्ता
 आर्टमिस-अग्रिम इंस्टीट्यूट फॉर न्यूरोसाइंसेस में स्ट्रोक यूनिट के सह-निदेशक और न्यूरोइंटरवेंशन निदेशक.
आर्टमिस अस्पताल

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