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सफेद मोतिया के इलाज में फे मटोसेकेंड लेजर

सब केटगॉरी : स्वास्थ्य  Jan,22,2020 12:50:04 PM
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सफेद मोतिया के इलाज में फे मटोसेकेंड लेजर

 डॉ. शरदनी व्यास 

नेत्र रोग विशेषज्ञ सेंटर फॉर साइट इंदौर 

चिकित्सा विज्ञान निरंतरता के साथ नए-नए आविष्कारों को सामने लाने में लगा हुआ है. ऐसी बीमारियां जिनका कोई इलाज नहीं था और ऐसे रोगों से अपने परिजनों को लड़ता हुआ देखकर सिर्फ आंसू ही बहाए जा सकते थे, चिकित्सा विज्ञान ने केवलउनका निदान ढूंढ़ लिया है, बल्कि उन्हें सामान्य रोग बना दिया है. ये ठीक है कि अभी भी अनगिनत रोग चिकित्सा विज्ञानियों के सामने चुनौती पेश करते हुए खड़े हैं, लेकिन उनके खिलाफ भी संघर्ष जारी है और कभी कभी तो उनका भी इलाज ढू़ंढ ही लिया जाएगा. निश्चित तौर पर नेत्र रोगों को उसी श्रेणी में रखा जा सकता है जिनके निदान में चिकित्सा विज्ञान ने अदभुत कामयाबियां हासिल की हैं. एक जमाना था जब सभी तरह के नेत्र रोगों का मतलब अंधा हो जाना ही समझा जाता था और मोतियाबिंद तो जैसे अंधा होने का पर्याय ही था. हालांकि, आज भी मोतियाबिंद ही दुनिया भर में नेत्रहीनता का सबसे बड़ा कारण है लेकिन नेत्र चिकित्सा के  क्षेत्र में जो प्रगति हुई है उसने कम से कम इसे आतंक फैलाने वाला रोग तो नहीं ही रहने दिया है.

यह एक बड़ी सच्चाई है कि अगर सही इलाज हो तो यह हमारी आंखों का कुछ भी नहीं बिगाड़ सकता है. सिर्फ इस रोग का पहले जैसा आतंक नहीं रह गया है बल्कि हर तरह से सफेद मोतिया की सर्जरी के क्षेत्र में जबरदस्त प्रगति हुई है. वैसे तो इस क्षेत्र में निरंतर रूप से ही बदलाव होते जा रहे हैं जिसने मरीजों के इलाज को और भी सरल और सटीक बना दिया है. यह क्र ांतिकारी परिवर्तन लेकर आया है फेमटोसेकेंड लेजर. इस लेजर तकनीक ने सफेद मोतिया के इलाज में मानवीय पक्ष को एक हद तक समाप्त कर दिया है और इस संपूर्ण प्रक्रिया को ही पूर्व-नियोजित, यांत्रिक और माइक्रोन स्तर तक भी नियमित कर दिया है.

फेमटोसेकेंड लेजर प्रौद्योगिकी के अंतर्गत आंखों की एक उच्च विभेदन (रिजॉल्यूशन) वाली छवि निर्मित होती है जो लेजर के लिए मार्गदर्शन देने का काम करती है. इसके परिणामस्वरूप कॉर्निया से संबंधित छेदन पूर्व नियोजित हो पाते हैं और लेजर सटीक पूर्वगामिता के साथ उनके संबंध में निर्णय करता है. अग्रवर्ती लेंस कैपसूल, जिसे कैपसूलोरेक्सिस कहा जाता है, उसमें एक सुकेंद्रित, अनुकूलतम आकार का मामूली सा छिद्र किया जाता है और फिर लेंस को लेजर किरणों का इस्तेमाल करते हुुए नरम और द्रवित कर दिया जाता है. इसके पश्चात लेंस को छोटे कणों में तोड़ डाला जाता है. शल्य चिकित्सक को इस नई प्रक्रिया का सबसे बड़ा फायदा यह होता है कि उसे लेंस को तराशने और काटने जैसे तकनीकी रूप से कठिन कदम नहीं उठाने पड़ते जिनकी वजह से जटिलताएं पैदा हो सकती थीं. इसमें फेको-एमलसिफिकेशन ऊर्जा को 43 प्रतिशत कम कर दिया जाता है और फेको-समय को 51 प्रतिशत घटाया जाता है. इससे संपूर्ण ज्वलनशीलता में कमी आती है और आंखों के पहले वाली स्थिति में लौटने की प्रक्रिया में तेजी जाती है. जख्म की स्थिर संरचना संक्रमण दर को भी न्यूनतम कर देती है. देखने में भी यह अधिक बेहतर परिणाम देता हुआ प्रतीत होता है क्योंकि सर्जरी की प्रक्रिया स्पष्ट और सटीक होती है.

सफेद मोतिया के इलाज की इस नवीनतम प्रौद्योगिकी के माध्यम से हासिल होने वाला एक अन्य महवपूर्ण लाभ यह है

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