डॉ. शरदनी व्यास
नेत्र रोग विशेषज्ञ सेंटर फॉर साइट इंदौर
यह एक बड़ी सच्चाई है कि अगर सही इलाज हो तो यह हमारी आंखों का कुछ भी नहीं बिगाड़ सकता है. न सिर्फ इस रोग का पहले जैसा आतंक नहीं रह गया है बल्कि हर तरह से सफेद मोतिया की सर्जरी के क्षेत्र में जबरदस्त प्रगति हुई है. वैसे तो इस क्षेत्र में निरंतर रूप से ही बदलाव होते जा रहे हैं जिसने मरीजों के इलाज को और भी सरल और सटीक बना दिया है. यह क्र ांतिकारी परिवर्तन लेकर आया है फेमटोसेकेंड लेजर. इस लेजर तकनीक ने सफेद मोतिया के इलाज में मानवीय पक्ष को एक हद तक समाप्त कर दिया है और इस संपूर्ण प्रक्रिया को ही पूर्व-नियोजित, यांत्रिक और माइक्रोन स्तर तक भी नियमित कर दिया है.
फेमटोसेकेंड लेजर प्रौद्योगिकी के अंतर्गत आंखों की एक उच्च विभेदन (रिजॉल्यूशन) वाली छवि निर्मित होती है जो लेजर के लिए मार्गदर्शन देने का काम करती है. इसके परिणामस्वरूप कॉर्निया से संबंधित छेदन पूर्व नियोजित हो पाते हैं और लेजर सटीक पूर्वगामिता के साथ उनके संबंध में निर्णय करता है. अग्रवर्ती लेंस कैपसूल, जिसे कैपसूलोरेक्सिस कहा जाता है, उसमें एक सुकेंद्रित, अनुकूलतम आकार का मामूली सा छिद्र किया जाता है और फिर लेंस को लेजर किरणों का इस्तेमाल करते हुुए नरम और द्रवित कर दिया जाता है. इसके पश्चात लेंस को छोटे कणों में तोड़ डाला जाता है. शल्य चिकित्सक को इस नई प्रक्रिया का सबसे बड़ा फायदा यह होता है कि उसे लेंस को तराशने और काटने जैसे तकनीकी रूप से कठिन कदम नहीं उठाने पड़ते जिनकी वजह से जटिलताएं पैदा हो सकती थीं. इसमें फेको-एमलसिफिकेशन ऊर्जा को 43 प्रतिशत कम कर दिया जाता है और फेको-समय को 51 प्रतिशत घटाया जाता है. इससे संपूर्ण ज्वलनशीलता में कमी आती है और आंखों के पहले वाली स्थिति में लौटने की प्रक्रिया में तेजी आ जाती है. जख्म की स्थिर संरचना संक्रमण दर को भी न्यूनतम कर देती है. देखने में भी यह अधिक बेहतर परिणाम देता हुआ प्रतीत होता है क्योंकि सर्जरी की प्रक्रिया स्पष्ट और सटीक होती है.
सफेद मोतिया के इलाज की इस नवीनतम प्रौद्योगिकी के माध्यम से हासिल होने वाला एक अन्य महवपूर्ण लाभ यह है