साठ वर्ष की उम्र बुढ़ापे की ओर एक कदम जरूर है, लेकिन यह कोई इतनी बड़ी उम्र भी नहीं है कि आदमी मानसिक रूप से लाचार हो जाए, लेकिन अल्लजाइमर नामक बीमारी में यही होता है. पैंसठ वर्ष से अधिक आयु वर्ग के लगभग एक तिहाई लोगों पर इस बीमारी का आक्रमण होता है. इस रोग के परिणामों की घातकता अधिकांश लोगों की कल्पना से कहीं अधिक गंभीर होती है. एक बार रोग के लक्षण प्रकट हो जाने के बाद उसका अंत रोगी की मृत्यु के साथ ही होता रहा है. इस बीमारी का कारण धमनियों का कड़ा होना माना जाता है.
नए शोधों से अल्लजाइमर की कई किस्मों का पता चला है, लेकिन एक विशेष बात यह है कि इसकी किस्मों में दो तरह के प्रोटीन-बीटाएमिलाइड और ‘टाऊ’ होते हैं. ये दोनों किसी न किसी प्रकार से मस्तिष्क के उन हिस्सों की कोशिकाओं के कार्य में ही अवरोध पैदा करते हैं, जो स्मृति, भाषा और चिंतन के लिए आवश्यक हैं. अल्जाइमर में मस्तिष्क की भाषा और विचार वाले भाग की तंत्रिका कोशिकाएं नष्टï हो जाती हैं. इस बीमारी की आंरभिक अवस्था में व्यक्ति अपने दिन भर के कार्यक्रम भूल जाता है. इसके बाद पुरानी स्मृतियां धूमिल होने लगती हैं. फिर धीरे-धीरे घर का रास्ता, यहां तक कि घरवालों