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एआईओएस के वार्शिक सम्मेलन में अंधापन पर रोक लगाने के उपायों पर विचार किया गया जिन्हें रोका जा सकता है।

सब केटगॉरी : स्वास्थ्य  Feb,18,2020 12:40:09 PM
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एआईओएस के वार्शिक सम्मेलन में अंधापन पर रोक लगाने के उपायों पर विचार किया गया जिन्हें रोका जा सकता है।

17 फरवरी 2020: एआईओएस की ओर से आयोजित 78 वां वार्षिक अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन आज सम्पन्न हो गया। इस चार दिवसीय सम्मेलन में 7000 से अधिक अंतर्राष्ट्रीय नेत्र विषेशज्ञों ने भाग लिया और अपने विचारों का आदान-प्रदान किया। इस सम्मेलन में भारत में जमीनी स्तर पर प्रौद्योगिकी को उपलब्ध कराने और नेत्र विज्ञान के भविष्य को बढ़ावा देने के लिए विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की गयी।


सम्मेलन में यह बात सामने आयी कि भारत में आंखों से संबंधित बीमारियों के उपचार के लिए उपलब्ध नवीनतम और उन्नत तकनीकों को बढ़ावा देने और उन्हें लागू करने के लिए आवश्यक कदम उठाने की आवश्यकता है। इस अवसर पर आयोजित विभिन्न सत्रों में से एक सत्र में लोगों को गुणवत्ता और प्रौद्योगिकी संचालित आंखों की देखभाल उपलब्ध कराये जाने पर चर्चा की गयी। हालांकि लैसिक के आगमन और फेमटो सेकंड लेजर सर्जरी (जो आम तौर पर ब्लेड रहित मोतियाबिंद सर्जरी के नाम से भी जाना जाता है) जैसे मोतियाबिंद सर्जरी के उपचार में प्रगति से प्रक्रियाओं के उत्कृश्ट परिणाम हासिल हो रहे हैं। लेकिन मोतियाबिंद अभी भी दुनिया में अंधेपन का प्रमुख कारण है।


एआईओएस के अध्यक्ष महिपाल सचदेव ने सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा, ‘‘पिछले कुछ वर्षों के दौरान, मोतियाबिंद सर्जरी ‘‘रेस्टोरेटिव’’ सर्जरी से ‘‘रिफ्रैक्टिव’’ सर्जरी के रूप में विकसित हुई है और इसकी बदौलत मरीजों को बेहतर दृश्टि मिलती है और मरीजों की चष्मे पर से निर्भरता खत्म हो जाती है। पारंपरिक फेकोइमल्सीफिकेशन टांका रहित मोतियाबिंद सर्जरी एक तरह की मैनुअल तकनीक है, जिसमें हाथ से ब्लेड को पकड़कर कॉर्निया पर चीरे लगाये जाते हैं। जबकि फेमटोसेकंड लेजर का उद्देश्य इस हाथ से कई चरणों में और कई उपकरणों की मदद से की जाने वाली प्रक्रिया लेजर आधारित प्रक्रिया के रूप में तब्दील हो गई है जो कम्प्यूटर संचालित है और बिल्कुल सटीक होती है। इसमें आंखों की उच्च रिजॉल्यूशन वाली महत्वपूर्ण छवि प्राप्त होती है जिसकी माप की मदद से बिल्कुल सटीक तरीके से सर्जरी की जा सकती है जो परम्परागत सर्जरी की मदद से संभव नहीं हो पाती है। फेमटोसेकंड में, मोतियाबिंद सर्जरी के कुछ पहलुओं को कंप्यूटर द्वारा स्वचालित रूप से प्रोग्राम और मॉनिटर किया जाता है।

 

इस सम्मेलन में इस तथ्य को पेश  किया गया कि कम दृष्टि और अंधेपन से भारत की कुल आबादी में से 9 प्रतिशत लोग ग्रस्त हैं। भारत में 19 मिलियन दृष्टिहीन लोग हैं और हर दिन यह संख्या बढ़ रही है। विकसित और विकासशील दोनों देशों में मोतियाबिंद कम दृष्टि का एक महत्वपूर्ण कारण है। दुनिया भर में अंधेपन के षिकार लोगों में से 50 प्रतिषत लोगा मोतियाबिंद से ग्रस्त हैं। भारत में सन 2020 तक मोतियाबिंद के कारण होने वाले अंधेपन से ग्रस्त लोगों की संख्या बढ़कर 8.25 मिलियन हो सकती है। इसका कारण 50 वर्श से अधिक उम्र के लोगों की संख्या में उल्लेखनीय बढ़ोतरी है।


एआईओएस के कोशाध्यक्ष डाॅ. राजेश  सिंन्हा ने कहा, ‘‘लोगों की जीवन प्रत्याषा बढ़ने के कारण उम्र से संबधित मैक्युलर रिजेनरेशन और डायबेटिक रेटिनोपैथी जैसी बीमारियों से ग्रस्त लोगों में शहरी लोगों का प्रतिशत बढ़ रहा है। रोग का समय पर पता लगाया जाना और उनका उपचार महत्वपूर्ण है क्योंकि इन रोगों का इलाज करके दृष्टि को होने वाले नुकसान को रोका जा सकता है। डायबिटिक रेटिनोपैथी में उन्नत चरण में कोई लक्षण प्रकट नहीं होते हैं और इसलिए मधुमेह के सभी मरीजों के लिए नियमित रेटिना स्क्रीनिंग आवश्यक है। रेटिना विशेषज्ञ बीमारी के चरण और रोगी की उम्र के आधार पर उपयुक्त उपचार के विकल्प सुझा सकते हं। इन विकल्पों में लेजर फोटोकोगुलेशन, इंट्राविट्रियल इंजेक्शन और विट्रेक्टॉमी शामिल हैं।’’


एआईओएस का मानना है कि ‘‘मेक इन इंडिया’’ वक्त की जरूरत है क्योंकि आज आईकेयर सुविधाओं के लिए कठिन समय है और इसका कारण यह है कि लागत बढ़ रहा है, नियम-कानून कड़े हो रहे हैं और वित्तीय सहयोग में गिरावट आ रही है।

 
एआईओएस की मानद महासचिव नम्रता शर्मा ने कहा, ‘‘आज के समय में आईकेयर सुविधाओं के समक्ष जो मुख्य चुनौतियां हैं उनमें सरकारी सहायता प्राप्त योजनाओं के माध्यम से अत्याधुनिक सर्जरी की कीमत की  कैपिंग भी प्रमुख है। एक सर्वेक्षण में यह अनुमान लगाया गया था कि अगर कोई लाभ लिए बगैर मोतियाबिंद सर्जरी की जाए तो उस पर 24,000 रुपये की लागत आती है लेकिन कीमत की कैपिंग के कारण मोतियाबिंद सर्जरी की दर घटाकर 7500 रुपये कर दी गई। अगर सामग्रियों एवं उपभोग्य वाली सामग्रियों का स्वदेषी आधार पर उत्पादन हो तो इस लागत को कम करने में मदद मिलेगी और ऐसे समय में यह बहुत ही जरूरी है। एआईओएस को इस बात की कोषिष करनी होगी कि हर तरह के सहयोग उपलब्ध कराकर उद्योग जगत, संस्थानों तथा आविश्कार करने वाले लोगों को प्रोत्साहित किया जाए ताकि स्वदेषी उपकरण विकसित हो सके।’’

 

 

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