69 वर्षीय मरीज के दिल में कैल्शियम जमा होने के कारण उसकी जान का खतरा था। जिसके बाद मैक्स अस्पताल, वैशाली में कोरोनरी लीथोट्रिप्सी तकनीक का उपयोग कर मरीज का सफलतापूर्वक इलाज किया गया। मरीज के सीने में बार-बार गंभीर दर्द की शिकायत हो रही थी। मरीज को गंभीर हालत में इमरजेंसी में भर्ती किया गया था। पूरी जांच के बाद उसके दिल की मुख्य धमनी में 90 प्रतिशत ब्लॉकेज पाया गया। इस ब्लॉकेज का कारण कैल्शियम की मोटी परत थी, जिसके कारण एंजियोप्लास्टी करना बिल्कुल भी संभव नहीं था। पूरी प्रक्रिया लोकल एनीस्थीसिया के तहत धमनी में मौजूद ऑप्टिकल कोहेरेंस टोमोग्राफी (ओसीटी) (एक छोटे कैमरे की मदद से) की मदद से की गई। मरीज को प्रक्रिया के 2 दिनों बाद अस्पताल से डिस्चार्ज कर दिया गया और अब वह पूरी तरह स्वस्थ है।
दरअसल, धमनी में जमा कैल्शियम कम से कम 20 प्रतिशत मामलों में एंजियोप्लास्टी के विकल्प को खत्म कर देती है। यही नहीं, यह समस्या लंबी अवधि में प्रक्रिया की विफलता और हृदय संबंधी समस्याओं के लिए जिम्मेदार होती है। ऐसे मामलों के लिए इंट्रावस्कुलर लीथोट्रिप्सी (आईवीएल) एक एडवांस तकनीक है, जो कैल्शियम की परत को तोड़ने के लिए सोनिक प्रेशर वेव्स बनाती है। इससे धमनी को आसानी से खोलना संभव हो पाता है और स्टेंट की मदद से रक्त प्रवाह में भी सुधार आता है।
इंस्टीट्यूट ऑफ कार्डियक साइंसेस के कार्डियोलॉजी एसोसिट निदेशक, डॉ. अमित मलिक ने जानकारी देते हुए कहा कि, “चूंकि, कैल्शियम ब्लॉकेज इलाज के समय और चुनौतियों को बढ़ा देता है इसलिए ऐसे मामलों के लिए इंट्रावस्कुलर लीथोट्रिप्सी एक बेहतर वकल्प है। कैल्शियम बहुत ज्यादा मात्रा में जमा होने के कारण एडवांस कोरोनरी आर्टरी डीजीज (सीएडी) से ग्रस्त मरीजों के इलाज के लिए यह एक नई और एडवांस प्रक्रिया है। हमें बेहद खुशी है कि इस क्षेत्र में इस प्रक्रिया की पहल हमने की। यह प्रक्रिया भारत में कई ऐसे रोगियों के लिए फायदेमंद साबित होगी जो एंजियोप्लास्टी से गुजर रहे हैं। यह एक अग्रणी थेरेपी है जो दुनिया भर में कोरोनरी आर्टरी के मरीजों की मदद कर रही है और इससे भी अच्छी बात यह है कि आब यह भारत में भी उपलब्ध है।”
यह एक हाई एंड तकनीक है जिसमें रोटा-एब्लेशन नाम की एक हाई स्पीड डायमंड ड्रिल की मदद से रास्ता तैयार किया जाता है। एक बार जब रास्ता तैयार हो जाता है तो धमनी में एक खास गुब्बारा लगाया जाता है, जो सोनिक प्रेशर वेव्स निकालकर जमा कैल्शियम को तोड़ देता है। इसके बाद दिल में एक स्टेंट लगाया जाता है। डॉ. अमित ने अधिक जानकारी देते हुए कहा कि, “एक मामूली कट के साथ, यह तकनीक उन सभी मरीजों के लिए एक नई उम्मीद की तरह है, जिनकी धमनी को बलून एंजियोप्लास्टी की मदद से खोलना संभव नहीं होता है। अब सख्त से सख्त ब्लॉकेज को न सिर्फ खोलना संभव है, बल्कि लंबी अवधि में इसके परिणाम भी बेहतर होते हैं। इंट्रावस्कुलर लीथोट्रिप्सी के दौरान उत्पन्न होने वाली सोनिक प्रेशर वेव्स प्रक्रिया को अधिक सुरक्षित और सिद्ध उपचार बनाती हैं, जो कैल्शियम की परत को आसानी से तोड़ने में मदद करती हैं।”