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15 मिनट की सर्जरी ने 94 वर्षीय हृदय रोगी की जान बचाई -मैक्स अस्पताल

सब केटगॉरी : स्वास्थ्य  Sep,21,2020 01:27:44 PM
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15 मिनट की सर्जरी ने 94 वर्षीय हृदय रोगी की जान बचाई -मैक्स अस्पताल

नई दिल्ली: लॉकडाउन के दौरान एक 15 मिनट की सर्जरी ने 94 वर्षीय महिला के हृदय को कोलेप्स होने से बचा लिया। सर्जरी की प्रक्रिया लीडलेस पेसमेकर के इंप्लान्ट के साथ पूरी की गई। असामान्य धड़कनों की समस्या के इतिहास और प्रति मिनट 30 से भी कम धड़कनों के साथ, महिला की हालत दिन-ब-दिन गंभीर होती जा रही थी।

श्रीमती झुनझुनवाला (पद्म श्री सम्मानित) को शुरुआत में ब्रेन हेमरेज (मस्तिष्क के बाहरी हिस्से में ब्लीडिंग) की समस्या के साथ भर्ती किया गया था। जिसके बाद उनके मस्तिष्क की सर्जरी की गई थी। लेकिन अस्पताल में उनकी रिकवरी के दौरान उनके दिल की धड़कनें धीरे-धीरे बहुत धीमी होने लगी (30 से भी कम), जिसके लिए पेसमेकर इंप्लान्ट की जरूरत पड़ी।

मस्तिष्क की सर्जरी के बाद श्रीमती झुनझुनवाला रिकवर कर ही रही थीं कि उन्हें एक दूसरी प्रक्रिया की जरूरत पड़ गई। उन्हें लीडलेस पेसमेकर के महत्व और तात्कालिकता के बारे में समझाने पर वे इंप्लान्ट के लिए तुरंत मान गईं।

साकेत स्थित मैक्स अस्पताल के कार्डियक साइंसेस विभाग के चेयरमैन, डॉक्टर बलबीर सिंह ने बताया कि, यह लीडलेस पेसमेकर केवल 5 ग्राम का होता है, जिसके लिए कट या टांकों की बिल्कुल जरूरत नहीं पड़ती है। 4 साल पहले भारत में पहला लीडलेस पेसमेकर इंप्लान्ट करवाने के बाद इस बार भी मुझे खुद पर पूरा भरोसा था। इसी भरोसे के साथ हमने सर्जरी को केवल 15 मिनटों में पूरा कर लिया, जिसके कुछ ही दिनों में उन्हें घर भेज दिया गया। 15 दिनों पहले जब वे फॉलोअप के लिए आईं तो उन्होंने पेसमेकर को लेकर संतुष्टी और खुशी जताई। उनकी नाज़ुक उम्र के बाद भी परिणाम इतने अच्छे रहे। 

आट्रियल फिब्रिलेशन (एरिथमिया) दिल की असामान्य धड़कनों की सबसे आम प्रकार की समस्या है। यह समस्या ब्लड क्लॉटिंग की गहरी क्षमता रखती है जिससे स्ट्रोक, हार्ट फेलियर और हृदय संबंधी अन्य समस्याओं का खतरा बढ़ता है। एएफ के दौरान, दिल के ऊपरी 2 चैम्बर धीमी गति और अनियमित रूप से धड़कते हैं, जिसके कारण उनमें और नीचे के 2 चैम्बरों में ताल-मेल नहीं बैठ पाता है। आमतौर पर, यह अनियमितता उम्र के साथ विकसित होती है और एएफ के ज्यादातर मरीज बुजुर्ग होते हैं। पश्चिम में, एएफ की समस्या तब होती है जब व्यक्ति 60 की उम्र में होता है। जबकी भारत में, औसत आयु 55 साल है। हालांकि, डायबिटीज और उच्च रक्तचाप से ग्रस्त लोग इस समस्या की चपेट में जल्दी आ सकते हैं।

डॉक्टर बलबीर ने अधिक जानकारी देते हुए कहा कि, आट्रियल फिब्रिलेशन की सबसे बड़ी खामी यह है कि इसमें खून के थक्कों का खतरा बहुत ज्यादा होता है। ये थक्के शरीर के दूसरे अंगों तक पहुंचकर रक्त प्रवाह में बाधा बन सकते हैं जिसे इस्किमिया भी कहते हैं। यदि थक्का टूट कर मस्तिष्क तक जाने वाली धमनी में प्रवेश कर जाए तो इससे स्ट्रोक हो सकता है। स्ट्रोक के 15-20% मरीजों को एएफ होता है और गंभीर मामलों में तो यह दिल की विफलता का भी कारण बन सकता है। 

इस मामले में, अनियमित धड़कनों के अलावा कई बार उनकी धड़कनों का स्तर बिल्कुल नीचे चला जाता था, जिससे उनका हृदय कोलेप्स हो सकता था।

 

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