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प्रशिक्षण है : जरूरी सफलता के लिए

सब केटगॉरी : शिक्षा  Sep,22,2020 02:49:10 PM
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प्रशिक्षण है : जरूरी सफलता के लिए

इन्टर्नशप या ट्रेनिंग सबसे ज्यादा प्रोफेशनल कोर्सिस के लिए मान्यनें रखती है. अधिकांश प्रोफेशनल कोर्सों में इंटर्नशिप को अनिवार्य माना जाता है. किताबी ज्ञान हासिल कर लेने के बाद जरूरी नहीं है कि किसी भी प्रोफेशनल इंडस्ट्री में आप बेहतर काम कर सके. किसी भी प्रोफेशनल कोर्स की ट्रेनिंग के बाद विद्यार्थियों को इस बात की भी जानकारी दी जाती है कि इंडस्ट्री में काम कैसे होता है. इंडस्ट्री में मिलने वाली इसी प्रैक्टिकल टेऊनिंग को इन्टर्नशिप कहा जाता है. इन्टर्नशिप न की जाए तो रोजगार हासिल करने में बहुत सी दिक्कतें आ सकती है. काम का सही पाता न होना ही युवाओं को रोजगार से अधिक दिन के लिए दुर रखता है. जब एक कॉलेज स्टूडेंट किसी कंपनी में इंटर्नशिप शुरू करता है, तो पहली बार उसे ऑफिसली माहौल या प्रैक्टिकल वर्क के बारे में जानने का मौका मिलता है. ऑफिस का प्रोफेशनल माहौल कई बार स्टूडेंट्स के लिए चुनौतीपूर्ण हो जाता है, लेकिन कुुछ खास तैयारी और अच्छे इंटर्नशिप से आप कंपनी और उसके एंप्लॉइज के साथ एक मजबूत प्रोफेशनल रिलेशनशिप बना सकते हैं. मुमकिन है कि आगे चलकर इसका फायदा भी आपको जॉब के रूप में मिले.

इन्टर्नशिप वो मौका होता है, जिसे करके प्रोफेशनल कोर्स करने वाले स्टूडेंट्स करियर संबंधित अनुभव प्रैक्टिकली तौर से प्राप्त करते है. इसके अंर्तगत युवा चुनौतिपूर्ण काम को हाथ में लेकर पूरा कर अपना प्रोफेशनल और पर्सनल तौर से विकास करते है. विशेषज्ञों का कहना है कि ‘‘इन्टर्नशिप वो प्रक्रिया है जिसमें विद्यार्थियों को खुलने और काम करने के अच्छे अनुभव प्राप्त करने का मौका मिलता है. उन्होंने जो भी पढ़ाई कॉलेज में पढ़ी होती है उसको इन्टर्नशिप करने के दौरान प्रैक्टिकली तौर से उपयोग करने का अवसर प्राप्त होता है. इन्टर्नशिप एक ऐसा मौका होता है जिसमें थ्योरी और प्रैक्टिस दोनों के मेल के साथ काम के माहौल को देखने का भी मौका मिलता है.’’ इन्टर्नशिप विद्यार्थियों के सीवी की वेल्यू भी बढ़ता है और तो और जहां युवा इन्टर्नशिप करते है वही से उन्हें काम करने का ऑफर भी मिल जाता है. साथ ही उन्हें कैम्पस रिक्रुटमेंट के दौरान भी काम के कई अच्छे ऑफर्स मिलते है.’’ जिस प्रकार कार्य को करने का एक सही ढंग होता है, वैसे ही जीवन को समग्र रूप से जीने का भी एक विशेष ढंग होता है. प्रकृति के प्रभाव में खण्ड दृष्टि का होना अविद्या के कारण पाशविक प्रवाह आदि समग्रता की एकाग्रता को भंग करते हैं. इस एकाग्रता का लक्ष्य है वर्तमान में जीना. प्रत्येक सफलता के पीछे पहला रहस्य सूत्र भी यही है. सारे शिक्षण-प्रशिक्षण का यही लक्ष्य होना चाहिए.

आज एक अच्छी नौकरी पाना बहुत ही मुश्किल हो गया है. दिन-प्रतिदिन कॉम्पिटिशन टफ  हो रहा है, ऐसे में स्टूडेंट्स को मिलने वाली इंटर्नशिप का रोल और भी अहम हो गया है. इंटर्नशिप में अच्छी परफॉर्मेस से जॉब के दरवाजे खुलते हैं. इसलिए स्टूडेंट्स को यह ध्यान रखना चाहिए कि उसके परफार्र्मेस का नतीजा तो इंटर्नशिप खत्म होने पर आएगा, लेकिन एप्टीट्यूड और नॉन-वर्बल कम्युनिकेशन का रिजल्ट, तो शुरू के दो-तीन दिनों में ही मिल जाएगा. आप अगर सही ड्रेस सेंस के साथ कंपनी में एंट्री करेंगे, प्रॉपर एटिकेट्स के साथ लोगों से मिलेंगे, तो वहां के लोग भी आपको पॉजिटिव ही लेंगे. प्रशिक्षण का पहला कदम विश्वास ही है. प्रशिक्षक और प्रशिक्षु के बीच विश्वास जरूरी है. इसके लिए प्रशिक्षक की गुणवत्ता पर ही परिणाम टिके होते हैं. विषय के बारे में उसकी समझ कितनी है, भाषा पर उसकी पकड़ कितनी है, प्रशिक्षण के प्रति गंभीरता कितनी है, जीवन केे दृष्टिकोण व्यापक हैं अथवा संकीर्ण, समय का पाबंद, विनम्र, धैर्यवान आदि गुण संपन्न है अथवा नहीं. प्रशिक्षक का ध्येय, व्यक्तित्व का आकर्षण, मानवीय संवेदना का होना उतना ही महत्वपूर्ण है. इसके बिना प्रशिक्षक की कोई आवश्यकता नहीं रह जाती.

टिप्स फॉर ट्रेनर

इंटर्नशिप करने के दौरान इंटर्न को कुछ ऐसी बातों का ध्यान रखना बहुत जरूरी हो जाता है जो उसके भविष्य में काम आ सकती है. जैसे:-

एक इंटर्न के लिए यह जानना बेहद जरूरी है कि ऑर्गेनाइजेशन का फॉर्मल और इनफॉर्मल रिपोर्टिग स्ट्रक्चर क्या है, साथ ही इंटर्नशिप पीरियड के दौरान उन्हें किसे रिपोर्ट करना होगा, यह जानना बेहद जरूरी है. इसके लिए पहले दिन ही वहां के एचआर मैनेजर से मिलकर इंटर्नशिप की डिटेल्स पता कर लें कि आपको किसके अंडर में इंटर्नशिप करनी होगी, ताकि किसी एक सीनियर के गाइडेंस में काम करने और सीखने का मौका मिल सके.

इंटर्नशिप करने वाले फ्रेेशर्स को कोशिश करनी चाहिए कि वह एबसेंट न हो. इस दौरान समय का खासकर ध्यान जरूरी रखें. इससे आप सीनियर्स और मैनेजमेंट को इंप्रेस कर पाएंगे. उन्हें लगेगा कि आप काम को लेकर गंभीर हैं।

इंटर्नशिप के दौरान स्टूडेंट्स को अच्छा परफॉर्म करना होता है. इससे आगे के लिए मौके बनने के असार बनते हैं, लेकिन ये तभी हो सकता है, जब एक इंटर्न सिर्फ अपने काम से मतलब रखे.

एक स्टूडेंट जब इंटर्नशिप के लिए किसी कंपनी में जाता है, तो उसका मकसद सीखना होता है. इसलिए कोशिश यही होनी चाहिए कि जो असाइनमेंट मिले, उसे एक्सेप्ट करें.

इंटर्नशिप के दौरान एक इंटर्न के लिए अच्छी सोशल स्किल्स काफी काम आती हैं. ऑफिस के कलीग्स के साथ दोस्ताना व्यवहार करें.

शिष्य तो कच्ची मिट्टी की तरह होता है. गुरू उसको जो चाहे बना दे. आज का प्रशिक्षु कई अर्थो में गुरू या प्रशिक्षक से अघिक जानता है. अत: उसका श्रद्धालु होना बहुत कठिन है. वह जागरूक है, विषय के प्रति, किन्तु विषय को जीवन का अंग नहीं मानता. अत: मूल्यों के बारे में चिन्ता मुक्त है. स्वभाव से स्वच्छन्द भी है, जिसे स्वतंत्र बनाना है. भीतर की और बाहर की जीवन शैली को संतुलित किए बिना भी कोई प्रशिक्षण सफल नहीं होगा. विषय को आत्मसात करना तभी जाकर संभव होगा. वर्तमान में रहकर ही प्रशिक्षु औचित्य सिद्ध कर सकता है- प्रशिक्षण का. वर्तमान में ही वह अध्यात्म का आकलन कर सकता है. स्वयं की शक्तियों एवं कमजोरियों को भी समझ सकता है. सत्व, रज, तम प्रकृति के तीनों गुणों का भीतर अध्ययन कर सकता है. अविद्या, अस्मिता, आसक्ति, अभिनिवेश को विद्या भाव से दूर कर सकता है. कर्म को अकर्म (ब्रह्म) स्वरूप प्रदान कर सकता है. इसमें प्रशिक्षक और प्रशिक्षु दोनों का ही कर्ता भाव नहीं रहना चाहिए. वरना सारा ज्ञान अहंकार से आवरित हो जाएगा. किया कराया व्यर्थ हो जाएगा. इस प्रकार यदि अच्छे प्रशिक्षु के प्रति मन में राग पैदा हो जाए तब भी प्रशिक्षण भटक जाएगा. सही अर्थो में व्यक्ति का प्रशिक्षण का कार्य भी एक तरह की पूजा ही है. पत्थर से मूर्ति बनाकर मंदिर में बिठाना है. पूजा का फल समय की पाबंदी से जुड़ा है. जो समय के साथ बंधना नहीं चाहता चाहती, वह सफलता के द्वार सहजता से कभी नहीं पहुंच सकता. श्रम अलग है, बुद्धि अलग है, भाव अलग है. समय की पाबंदी से इनका कोई लेना-देना यदि है तो बस यही कि समय होते ही इनमें कर्म करने की भूख तीव्र हो उठती है. इधर लोहा गर्म हुआ, उधर चोट मारी कि कार्य पूरा. यह अभ्यास व्यक्ति को उम्र भर के लिए प्रशिक्षु बना देता है, भले ही वह प्रशिक्षण का कार्य करता हो. यही तप है, यही कान्ति है। इसी के स्वेद का नाम अमृत है.

ट्रेनिंग के फायदे

एक व्यवसायिक माहौल में काम करना का मौका मिलता है.

प्रोफेशनल नेटवर्क और कन्टैक्ट बढ़ते है. पैसा भी कमाये जा सकता है. स्टुडैंट के आत्मविष्वास को बढ़ता है, जिससे उनके स्कील, टेंलेड और क्षमता बढ़ती है. भविष्य के लिए अच्छे अनुभव प्राप्त होते हैं.

सक्सेस गुरु ए के मिश्रा
चाणक्य आईएएस एकेडमी के निदेशक

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