किडनी संबंधित बीमारियां विश्वस्तर पर बढ़
रही मृत्युदर के मुख्य कारणों में से एक हैं. हालिया आंकड़ों के अनुसार, विश्वस्तर
पर अबतक लगभग 100 करोड़ लोग किडनी की बीमारी से प्रभावित हो चुके हैं. हालांकि,
लोग अपने ब्लड प्रेशर और कोलेस्ट्रॉल स्तर की जांच समय-समय पर कराते रहते हैं,
लेकिन वे किडनी की जांच पर ध्यान नहीं देते हैं जिसके कारण कई बार बीमारी की पहचान
करने में देर हो जाती है. किडनी की बीमारी उम्र देख के नहीं आती, लेकिन जो लोग
उच्च रक्तचाप और डायबिटीज जैसी बीमारियों से ग्रस्त हैं, फेल किडनी का पारिवारिक
इतिहास रखते हैं या जिनकी उम्र 60 से अधिक है उनमें इस बीमारी का खतरा ज्यादा होता
है. दरअसल, माना जा रहा है कि हालिया विश्वव्यापी महामारी कोविड-19 भी किडनी की
कार्य प्रणाली को प्रभावित करके किडनी फेलियर का कारण बन रही है. इसके बाद व्यक्ति
की जान तक जा सकती है, इसलिए किडनी स्वास्थ्य की देखभाल करना बेहद जरूरी है.
विश्वस्तर पर, किडनी संबंधी बीमारियों में
लगातार वृद्धि हो रही है, जहां अधिकतर लोगों को इस बात की खबर ही नहीं होती है कि
वे ऐसी किसी बीमारी से ग्रस्त हैं. ग्लोबल बर्डन डिजीज (जीबीडी) 2018 की हालिया
रिपोर्ट के अनुसार, विश्वस्तर पर बढ़ती मृत्युदर का 5वां सबसे बड़ा कारण किडनी की
बीमारी है. किडनी की बीमारी के निदान और इलाज में देरी करने पर मरीज की हालत गंभीर
होती जाती है, जिसके बाद किडनी फेल तक हो सकती है. समय पर जांच के साथ बीमारी को
गंभीर होने से रोका जा सकता है. सबसे खतरनाक परिणामों में किडनी की बीमारी का आखरी
चरण, एनीमिया और कार्डियोवस्कुलर डिजीज (सीवीडी) जैसी संबंधित बीमारियों की पहचान,
हेमो-डायलिसिस का अत्यधिक उपयोग, अस्पताल में अधिक दिनों तक भर्ती रहना, अत्यधित
खर्च और जान बचने की कम से कम संभावनाएं आदि शामिल हैं।
सभी के लिए यही सलाह कि वे स्क्रीनिंग
प्रोग्राम की मदद से किडनी की नियमित रूप से जांच कराएं. इस प्रकार समय पर बीमारी
की पहचान के साथ मरीज की जान बचाना संभव है.
ऐज फेक्टर (उम्र)
किडनी की बीमारी को साइलेंट किलर के नाम
से भी जाना जाता है क्योंकि शुरुआती चरण में इसके कोई लक्षण नहीं नजर आते हैं.
हालांकि, इस बीमारी के खतरे को कम करने के कई तरीके हैं इसलिए बीमारी के गंभीर
होने तक इंतजार क्यों करना? यह बीमारी न सिर्फ
80 की उम्र तक के लोगों में पाई गई बल्कि 6-8 साल की उम्र के बच्चों में भी
देखी गई है. यही वजह है कि शुरुआती जांच के साथ मरीज का जीवन बेहतर हो सकता है.
वयस्क और उम्रदराज आबादी
इस उम्र में व्यक्ति डायबिटीज और उच्च
रक्तचाप जैसी कई प्रकार की बीमारियों से ग्रस्त हो सकता है। ये बीमारियां किडनी के
स्वास्थ्य को बीगाड़ती रहती हैं। 60 से अधिक उम्र के लोगों में किडनी की बीमारी का
मुख्य कारण यही बीमारियां हैं। इसके लक्षणों में निम्नलिखित शामिल हैं
पैरों में सूजन
जब किडनी ठीक से काम करना बंद कर देती है
तो शरीर से सोडियम बाहर नहीं निकल पाता है जिससे पैरों में सूजन आ जाती है.
थकान, भूख की कमी
शरीर में जहरीले और बेकार पदार्थों के
कारण किडनी और अधिक कमजोर पडऩे लगती है. जिससे मरीज जल्दी थकने लगता है और भूख भी
नहीं लगती है.
पेशाब में गड़बड़ी
रात को पेशाब लगना, पेशाब में अत्यधिक बुलबुले या खून की
बूंदे या मवाद (पस) आदि किडनी में गड़बड़ी को दर्शाता है.
लो एचबी, रूखी त्वचा व खुजली
किडनियां शरीर से बेकार और अतिरिक्त तरल
पदार्थों को बाहर करने में सहायक होती हैं. इसके अलावा किडनियां रेड ब्लड सेल्स
बनाती हैं जो हड्डियों को मजबूत बनाती हैं. रूखी त्वचा और खुलजी एडवांस किडनी
डिजीज के लक्षण हो सकते हैं.
बच्चे और टीनएजर्स अक्सर लोग अपने बच्चों
के स्वास्थ्य को अनदेखा कर देते हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि बच्चों को ऐसी
बीमारियां नहीं हो सकती हैं. किडनी की बीमारी को आज भी लोग बुजुर्गों की बीमारी
समझते हैं. जब किसी बच्चे के स्वास्थ्य की बात आती है तो हममे से कई, पेरेंट्स,
डायटीशियन, पेडियाट्रीशियन्स आदि सबका ध्यान मुख्य रूप से मोटापा और दिल की
बीमारियों पर होता है.
जन्म के बाद से ही बच्चे की स्वस्थ
जीवनशैली के लिए शुरुआती निदान जरूरी है. बच्चा एक्यूट किडनी इंजरी, क्रोनिक किडनी
डिजीज आदि जैसी किडनी की बीमारियों से जन्म से ही ग्रस्त हो सकता है इसलिए उसके
सफल इलाज के लिए सही समय पर बीमारी की पहचान होना जरूरी है. बच्चों में नजर आने
वाले लक्षणों में निम्नलिखित शामिल हैं:- वजन न बढऩा, धीमा विकास, बॉडी पेन और
पेशाब की शिकायत जल्दी-जल्दी होना या धीमी गति से पेशाब होना, चेहरे, पैर, टखनों
आदि में सुबह उठने पर सूजन होना, पेशाब का रंग बदलना, पेट के निचले हिस्से में
दर्द की बार-बार शिकायत, पेशाब की हुई जगह पर चीटियों का दिखना भी एक लक्षण हो
सकता है.
पेरेंट्स को हमेशा इस बात का ख्याल रखना
चाहिए कि उनके बच्चे शारीरिक रूप से सक्रिय हों, फिट हों और अच्छा खाते हों.
शुरुआत में बच्चों को स्कूल स्पोट्र्स में हिस्सा लेने के लिए प्रोत्साहित करना
चाहिए. इतना ही नहीं बच्चें फिट रहें इसके लिए पेरेंट्स को भी एक्टिव होना पड़ेगा.
संतुलित आहार फैट, काब्र्स, प्रोटीन का मिश्रण होता है. पैकेट वाला खाना,
कार्बोहाइड्रेटेड ड्रिंक्स आदि से परहेज करने से शरीर में शुगर और नमक की मात्रा
संतुलित रहती है.
नियमित रूप से जांच कराएं
किडनी की बीमारी को साइलेंट किलर के नाम
से भी जाना जाता है क्योंकि शुरुआती चरण में इसके कोई लक्षण नहीं नजर आते हैं.
हालांकि, इस बीमारी के खतरे को कम करने के कई तरीके हैं, इसलिए बीमारी के गंभीर
होने तक इंतजार क्यों करना. बच्चों और वयस्कों के लिए किडनी से संबंधित जांच साल
में कम से कम एक बार कराना जरूरी है. यदि आपको डायबिटीज, उच्च रक्तचाप या मोटापा
है या आपकी उम्र 60 साल से ज्यादा है तो आपको हर तीन महीने में जांच कराना चाहिए.
डा. सुदीप सिंह सचदेव, नेफ्रे लोजिस्ट, नरायणा सुपर स्पेशियलिटी हॉस्पिटल, गुरुग्राम