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हार्ट फेल्योर के आखिरी चरण में पहुंचे मरीज की कृत्रिम हृदय से जान बचाना संभव

सब केटगॉरी : सेहत  Sep,23,2020 12:42:15 PM
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हार्ट फेल्योर के आखिरी चरण में पहुंचे मरीज की कृत्रिम हृदय से जान बचाना संभव

भारत में कार्डियक अस्पतालों में लगभग 2 लाख से अधिक ओपन हार्ट सर्जरी की जाती है और इसमें सालाना 25 प्रतिशत की वृद्धि हो रही है, लेकिन वे दिल के दौरे की संख्या को नियंत्रित करने में सक्षम नहीं हैं. जो सर्जरी की जाती है वह केवल तात्कालिक लाभ के लिए होती है. हृदय रोग के कारण होने वाली मौतों को रोकने के लिए लोगों को हृदय रोग और इसके जोखिम कारकों के बारे में जरूरी चीजों से अवगत कराना महत्वपूर्ण है. अब अधिकतर लोग अपने 20 वें, 30 वें और 40 वें दशक के दौरान ही दिल की बीमारियों से पीडि़त हो रहे हैं. धूम्रपान और आराम तलब जीवनशैली भी 20 से 30 साल के आयु वर्ग के लोगों में इसके जोखिम के लक्षणों को और बढ़ाती है.

 जैसे कि हार्ट फेल्योर के आखिरी चरण में पहुंच चुके जयपुर के 58 वर्षीय मरीज को मैक्स हॉस्पिटल में नई जिंदगी मिल गई. पोस्ट कार्डियोटोमी शॉक की शिकायत के कारण यहां लाया गया था. मरीज केसी अग्रवाल में मैकेनिकल हार्ट पंप यानी लेफ्ट-वेंट्रिकुलर असिस्ट डिवाइस (एलवीएडी) का सफलतापूर्वक प्रत्यारोपण किया गया. उन्हें इससे पहले दिल का गंभीर दौरा पड़ चुका था, मरीज को गंभीर स्थिति में भर्ती कराया गया था और अधिक से अधिक वेंटिलेटर सपोर्ट मिलने के बाद भी उनका ऑक्सीजन लेवल खतरनाक स्थिति में बहुत कम हो चुका था. लिहाजा उन्हें तत्काल वेनो-आर्टेरियल एक्सट्राकॉर्पोरियल में ब्रेन ऑक्सीजेनेशन सपोर्ट (वी-ए ईसीएमओ) पर रखा गया. लगातार निगरानी में रखने के बाद उनका ईको शरीर की आवश्यकता के अनुरूप हो पाया. लेकिन उनकी हिमोडायनामिक्स की गंभीर स्थिति को देखते हुए ईसीएमओ का पूर्ण संचार बहाल करने के लिए सात दिन बाद ईको को हटाकर देखने की प्रक्रिया अपनाई गई. कई बार यह प्रयास विफल हो जाने के बाद डॉक्टरों की टीम ने ईसीएमओ जारी रखने का फैसला किया. हालांकि ईसीएमओ फेफड़े या हृदयगति रुक जाने की गंभीर स्थिति में ही दी जाती है.

मरीज गंभीर कार्डियोजेनिक शॉक के कारण हार्ट फेल्योर के अंतिम चरण में पहुंच चुका था, इसलिए उन्हें दिल का प्रत्यारोपण करने की सख्त जरूरत थी. लेकिन दिल का दान करने वाला कोई नहीं मिल रहा था, इसलिए लक्ष्य केंद्रित उपचार के तौर पर एक लेफ्ट वेंट्रिकुलर असिस्ट डिवाइस प्रत्यारोपित करने का फैसला किया गया. बिना किसी गड़बड़ी के यह प्रक्रिया पूरी हो गई जबकि वी-ए ईसीएमओ सपोर्ट को हटा लिया गया और एलवीएडी प्रत्यारोपित कर दिया गया. इस जटिल प्रक्रिया के लिए ऑपरेशन के बाद भी मरीज को आईसीयू और अस्पताल में रखे जाने की अवधि उम्मीद के अनुरूप रही. दरअसल, लेफ्ट वेंट्रिकुलर असिस्ट डिवाइस (एलवीएडी) एक तरह का मैकेनिकल पंप है, जो कि अंत-करण हृदय की विफलता के कारण हृदय प्रत्यारोपण की प्रतीक्षा कर रहे रोगियों में प्रत्यारोपित किया जाता है. साफ  शब्दों में कहें तो यह डिवाइस एक बैटरी संचालित मैकेनिकल पंप है, जो हृदय के मुख्य पंपिंग चेम्बर (बाएं वेंट्रिकल) को पूरे शरीर में रक्त पंप करने में मदद करता है. हम सब जानते हैं कि तनाव, खराब जीवनशैली, जंक फूड, शराब और धूम्रपान के सेवन के कारण पूरे देश में हृदय संबंधी बीमारियां तेजी से बढ़ रही हैं. दिल की विफलता वाले रोगियों की पीड़ा के बारे में बताना जरा मुश्किल काम है, लेकिन उनके लक्षणों के बारे में हमें पता होना चाहिए, जैसे कि हल्की सांस लेने पर सांस फूलना, दोनों पैरों में सूजन, तालू का फूलना, रात में पसीना, नींद में खलल, भूख न लगना आदि आपके हॉर्ट को कमजोर बना देता है.

दिल की बीमारी के ज्यादातर मामले शुरुआती चरण में पकड़ में नहीं आते हैं जिस कारण हृदय की गतिविधि बिगड़ती चली जाती है और अंत में यही हार्ट फेल्योर का कारण बनता है. कई मरीजों को बार-बार दिल का दौरा पड़ता है और डायलेटेड कार्डियोमायोपैथी के ऐसे मरीजों को एडवांस्ड हार्ट फेल्योर का खतरा अधिक रहता है. ऐसे मामलों में दिल का प्रत्यारोपण करने का ही विकल्प बचता है, जबकि डोनर नहीं मिल पाने के कारण ऐसे 70 फीसदी मरीजों की मौत हो जाती है. ऐसे हालात में एलवीएडी उन मरीजों के लिए वरदान साबित हुआ है और इससे कई लोगों की जान बच पाई है.

डॉ. केवल कृष्ण

निदेशक - हार्ट ट्रांसप्लांट

मैक्स सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल, साकेत, नई दिल्ली 

 

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