अपकंट्री, 8 अक्टूबर, 2020: एडवांस टेक्नोलॉजी ने स्तन कैंसर से ग्रस्त 32 वर्षीय महिला की जान बचाई। महिला का इलाज मैक्स अस्पताल, पटपड़गंज में किया गया, जहां उसके स्तन कैंसर का सफलतापूर्वक ऑपरेशन किया गया।
एक अत्याधुनिक टेक्नोलॉजी होने के नाते, ट्रू-बीम एसटीएक्स का इस्तेमाल भारत में पिछले कुछ ही समय से किया जा रहा है। इसका इस्तेमाल स्तन और फेफड़ों के कैंसर के लिए किया जाता है, जहां स्वस्थ अंगों पर रेडिएशन के दुष्प्रभाव का बिल्कुल खतरा नहीं होता है।
मरीज 2 बच्चों की मां है, जिसके बाएं स्तन में कैंसर की गांठ (जिसमें किसी प्रकार का दर्द नहीं था) का पता चला। दर्दनाक आजीवन कैंसर उपचार प्रक्रिया के बारे में जानकर महिला पूरी तरह निराश हो गई। लेकिन वह कैंसर के इलाज से संबंधित साइड-इफेक्ट के खतरे से दूर जल्द से जल्द ठीक होना चाहती थी। मरीज की हालत को देखते हुए, मैक्स अस्पताल, पटपड़गंज के ऑन्कोलॉजी विभाग के डॉक्टरों ने उसे ट्रू-बीम टेक्रनोलॉजी की सलाह दी।
पटपड़गंज स्थित मैक्स सुपर स्पेशिलिटी अस्पताल के रेडिएशन ऑन्कोलॉजी विभाग के निदेशक, डॉक्टर दिनेश सिंह ने बताया कि, “स्तन कैंसर की रेडियोथेरेपी की सबसे बड़ी चुनौती यह थी कि, मरीज के मुख्य अंग जैसे कि फेफड़े और हृदय रेडिएशन के एक्सपोज़र में आ सकते थे। ट्रू-बीम एक एडवांस तकनीक होने के नाते, बिल्कुल सटीक तरंगे छोड़ती है, जिसमें कैंसर से अलग अंगों पर इसके एक्सपोज़र का बिल्कुल खतरा नहीं होता है। इसके साथ ही यह प्रक्रिया बहुत ही कम समय में पूरी हो जाती है। डीआईबीएच तकनीक के ज़रिए ट्रू-बीम को मरीज की सांसों के साथ मिलाया गया। ऐसे में महिला जब भी गहरी सांस भरती, तो तरंगे केवल कैंसर पर वार करतीं, जिसकी मदद से अन्य अंगो को कोई नुकसान नहीं पहुंच सकता था। इलाज की प्रक्रिया पूरी होने के बाद, मरीज अब पूरी तरह स्वस्थ है और सामान्य जीवन में वापसी कर चुकी है।”
ग्लोबकैन भारत 2019 के हालिया आंकड़ों के अनुसार, भारत में कैंसर के सभी मामलों में 14% मामले स्तन कैंसर के हैं। यह भी देखा गया है कि, भारत में हर 4 मिनट में एक महिला स्तन कैंसर से ग्रस्त पाई जाती है। हालांकि, पहले स्तन कैंसर के इलाज के लिए केवल वही विकल्प थे, जहां सर्जरी के जरिए स्तन को काटकर निकाल दिया जाता था या मरीज को कीमोथेरेपी और रेडियोथेरेपी के खतरनाक असर से गुज़रना पड़ता था। लेकिन हालिया प्रगति के साथ, आज महिलाओं के लिए इलाज के कई अन्य विकल्प भी शामिल हो गए हैं।
पटपड़गंज, मैक्स सुपर स्पेशलिटी अस्पताल रेडिएशन ऑन्कोलॉजी विभाग के एसोसिएट निदेशक, डॉक्टर गगन सैनी ने बताया कि, “कैंसर के सफल इलाज में रेडियोथेरेपी एक मुख्य भूमिका निभाती है। टेक्नोलॉजी में प्रगति के साथ, कैंसर के इलाज में रेडिएशन की जरूरत के लिए नई मशीनें आ चुकी हैं। ट्रू-बीम एसटीएक्स भी इनमें से ही एक है, जिसने रेडिएशन से किए जाने वाले कैंसर के इलाज की परिभाषा ही बदल दी है। एक एडवांस रेडियो सर्जरी सिस्टम होने के नाते, ट्रू-बीम एसटीएक्स 1एमएम गलती की संभावना के साथ मुश्किल से मुश्किल ट्यूमर निकालने में सहायक साबित हुआ है।”
पारंपरिक लीनियर एक्सीलिरेटर में फिल्टर या संशोधित बीम के विपरीत, ट्रू-बीम में असली और बिना फिल्टर वाली बीम होती हैं, जो इसे अबतक की सबसे एडवांस तकनीक बना देता है। प्रभावशाली और मॉडर्न टेक्नोलॉजी होने के नाते, ट्रू-बीम रेडिशन को बिल्कुल सटीकता से छोड़ता है, जिससे आस-पास के स्थानों पर उसके असर की संभावना न के बराबर होती है। ट्रू-बीम का माइक्रो-मल्टी लीफ कॉलिमेटर छोटे से छोटे आकार के ट्यूमर को पहचानने की क्षमता रखता है। इसकी 6डी काउच रोटेशन प्रॉपर्टी ट्यूमर पर इस प्रकार असर करती है कि मरीज को कम से कम असुविधा महसूस होती है।
रेडियोलॉजिस्ट इस तकनीक को ज्यादा महत्व क्यों दे रहे हैं, यह समझाते हुए डॉक्टर सिंह ने कहा कि, “हम ज्यादा से ज्यादा मामलों में ट्रू-बीम का चुनाव इसलिए कर रहे हैं क्योंकि इस टेक्नोलॉजी के कई फायदे हैं। इसकी बिना फिल्टर वाली बीम इलाज को कम वक्त में पूरा करने में मदद करती हैं इसलिए ट्यूमर के बढ़ने की संभावना कम हो जाती है। यह तरंगों को पूरी सटीकता के साथ छोड़ने की क्षमता रखती है। एक्ज़ैकट्रैक नाम का इसका एक ऐप भी है, जो रेडिएशन के दौरान सटीकता के लिए मार्गदर्शन प्रदान करता है और इसका डीआईपीएच या गहरी सांस को रोकने वाली तकनीक तरंगों को हृदय और फेफड़ों तक पहुंचने से रोकती है। ”