श्री गंगानगर: फोर्टिस मेमोरियल रिसर्च इंस्टीट्यूट, गुरूग्राम ने ब्लड डिसऑर्डर, थैलेसीमिया, ब्लड कैंसर से ग्रस्त और बोन मैरो
ट्रांसप्लांट की जरूरत रखने वाले बच्चों के लिए निशुल्क ओपीडी का आयोजन किया। यह
ओपीडी तपोवन ब्लड बैंक, श्री गंगानगर, राजस्थान में आयोजित की गई थी। इस ओपीडी में कुल 110 मरीज उपस्थित रहे। भारत के बाल विशेषज्ञ, डॉ. विकास दुआ ने मरीजों को परामर्श दिया, जो फोर्टिस मेमोरियल रिसर्च इंस्टीट्यूट, गुरूग्राम में ऑनकोलॉजी और बोन मैरो ट्रांसप्लांट के बाल विशेषज्ञ
विभाग के निदेशक व प्रमुख भी हैं। भारत में, हर साल लगभग 2500-3000 बोन मैरो
ट्रांसप्लांट (बीएमटी) किए जाते हैं। हालांकि, भारत में बोन मैरो ट्रांसप्लांट की आवश्यकता रखने वाले मरीजों की
संख्या इससे बहुत ज्यादा है। इस अनुसार, यहां एक बहुत बड़ा अंतर देखने को मिलता है। इसका कारण जागरुकता, इंफ्रास्ट्रक्चर, सुविधाओं और उचित
फिजीशियन्स की कमी है। बीएमटी खास तौर पर ब्लड कैंसर, थैलेसीमिया, सिकल सेल एनीमिया, कमजोर इम्यूनिटी, अप्लास्टिक एनीमिया, ऑटो-इम्यून डिसऑर्डर के लिए किए जाने के साथ, आजकल विभिन्न प्रकार के सॉलिड ट्यूमर के लिए भी किया जा रहा है।
गुरूग्राम स्थित फोर्टिस मेमोरियल
रिसर्च इंस्टीट्यूट में बाल-ऑनकोलॉजी और बोन मैरो ट्रांसप्लांट के बाल विशेषज्ञ
विभाग के निदेशक व प्रमुख, डॉ. विकास दुआ ने बताया कि, “भारत में, ब्लड डिसऑर्डर से ग्रस्त बच्चों की
संख्या में वृद्धि हुई है। हालांकि, असल समस्या यह है कि उन्हें उचित इलाज नहीं मिल पा रहा है। मैने
देखा है कि इस क्षेत्र के बहुत से बच्चे थैलेमीसिया और अप्लास्टिक एनीमिया जैसे
ब्लड डिसऑर्डर से ग्रस्त हैं। हालांकि, जागरुकता की कमी के कारण वे ऐसी बीमारियों के लक्षणों को अनदेखा कर
देते हैं। हमें लोगों को यह बताने की आवश्यकता है कि बोन मैरो ट्रांसप्लांट की मदद
से इन बीमारियों को स्थायी रूप से ठीक किया जा सकता है। माता-पिता अपने बच्चों में
इन बीमारियों का आसानी से पता लगा सकते हैं। थैलेमीसिया के लिए 6 महीने की उम्र से ही बच्चे के शरीर में नए खून की आवश्यकता होती
है। वहीं, अप्लास्टिक के मरीजों में हीमोग्लोबिन, व्हाइट ब्लड सेल्स और प्लेटलेट्स कम होती हैं। ऐसे में उनमें
कमजोरी, थकान, लगातार बुखार, या शरीर पर लाल या
नीले चकत्ते आदि लक्षण नजर आते हैं। ब्लड कैंसर के रोगियों में भी थकान, कमजोरी के साथ संक्रमण और ब्लीडिंग का खतरा रहता है।”
डा.दुआ ने अधिक
जानकारी देते हुए कहा कि, “बोन मैरो ट्रांसप्लांट इस डिसऑर्डर के
लिए उपलब्ध एकमात्र स्थायी उपचार है। हमें बच्चे और उसके भाई या बहन के बीच एचएलए
नाम का टेस्ट करना होता है, जिसमें दोनों के मैच होने की संभावना 25-30 प्रतिशत होती है। बाकी के मरीजों के लिए एक डोनर ढूँढा जाता है।
यदि मरीज को परिवार या परिवार के बाहर से कोई डोनर नहीं मिलता है तो हम हाफ-मैच
ट्रांसप्लांट (हैप्लॉइडेंटिकल ट्रांसप्लांट) करते हैं, जहां डोनर माता या पिता में से कोई एक होता है।”
फोर्टिस मेमोरियल
रिसर्च इंस्टीट्यूट की जोनल डायरेक्टर, डॉ. रितु गर्ग ने बताया कि, “इस ओपीडी को आयोजित करने का विशेष उद्देश्य, श्रीगंगानगर और राजस्थान के लोगों को पीडियाट्रिक ब्लड डिसऑर्डर के
बढ़ते मामलों के बारे में जागरुक करना और उन्हें हमारी अत्याधुनिक सुविधाएं प्रदान
करना था। ब्लड डिसऑर्डर से ग्रस्त बच्चों का सही समय पर निदान और उपचार करना हमारा
मुख्य उद्देश्य है। बहुत से लोगों को शुरुआती परामर्श के लिए लंबा सफल तय करना
पड़ता है। इस प्रकार की ओपीडी इस ऐसे लोगों के लिए सहायक साबित होती हैं, जहां उन्हें घर से दूर जाए बिना सही समय पर उचित परामर्श मिल जाता है।
यह निशुल्क ओपीडी सुविधा, देश के अग्रणी स्वास्थ्य देखभाल
प्रदाता द्वारा लिया गया एक और रोगी-केंद्रित कदम है, जो रोगियों को विश्व स्तर की सुविधाएं प्रदान करता है।”