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युवा आबादी में स्ट्रोक के खतरे को कम करेगा डिजिटल डिटॉक्स

सब केटगॉरी : सेहत  Oct,21,2020 05:09:17 PM
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 युवा आबादी में स्ट्रोक के खतरे को कम करेगा डिजिटल डिटॉक्स

जब से दुनिया कोविड महामारी के घेरे में फंसी है, कोरोना के मामले लगातार बढ़ रहे हैं। इसी के साथ लोगों के बीच स्क्रीन का इस्तेमाल बहुत ज्यादा बढ़ गया है, जो खुद में एक नई महामारी की भांति है। वर्ल्ड स्ट्रोक ऑर्गेनाइजेशन के अनुसार, चार में से एक व्यक्ति जीवन में कभी न कभी स्ट्रोक अटैक का शिकार अवश्य बनेगा। लेकिन, यहां पर एक सवाल लगातार उठता दिखाई दे रहा है, जो यह कहता है कि आज स्ट्रोक का खतरा जितना बुजुर्गों में है उतना ही युवा आबादी में भी है। पहले, स्ट्रोक अधिक उम्र (60 से अधिक उम्र) के लोगों की बीमारी हुआ करती थी, लेकिन पिछले कुछ सालों में युवा आबादी में स्ट्रोक अटैक के कई मामले देखने को मिले हैं। एक हालिया अध्ध्यन के अनुसार, हालांकि, पिछले कुछ सालों में स्ट्रोक के मामले कम हुए हैं, लेकिन कम उम्र (25-45 साल) के लोगों में स्ट्रोक के मामले बढ़ते नजर आए हैं। अमेरिका व अन्य विकसित देशों की तुलना में, भारत में स्ट्रोक से ग्रस्त युवा आबादी की संख्या दुगनी है। स्ट्रोक बीमारी और विकलांगता का सबसे आम और प्रमुख कारण माना जाता है। एक अनुमान के अनुसार, विश्व स्तर पर प्रति 40 सेकेंड में एक व्यक्ति स्ट्रोक से ग्रस्त पाया जाता है और प्रति 4 मिनट में एक व्यक्ति स्ट्रोक के कारण मर जाता है। दरअसल, स्क्रीन का ज्यादा इस्तेमाल स्वास्थ्य के लिए खतरनाक माना जाता है। वहीं अब स्ट्रोक को भी इसके साथ जोड़ दिया गया है।
स्क्रीन का जितना ज्यादा इस्तेमाल, स्ट्रोक का उतना ज्यादा खतरा

 अमेरिका के हालिया अध्ध्यन के अनुसार, डिजिटल स्क्रीन के इस्तेमाल का समय हमारे जीवनकाल पर सीधा असर डालता है। अध्ध्यन के अनुसार, एक घंटा डिजिटल स्क्रीन का इस्तेमाल हमारी जिंदगी से 22 मिनट कम कर देता है। स्क्रीन का ज्यादा इस्तेमाल हार्ट अटैक, स्ट्रोक और कैंसर का कारण बन सकता है। यूनाइटेड किंगडम के एक बड़े अध्ध्यन, जो लगभग 40,000 प्रतिभागियों के साथ किया गया था, यह बताता है कि जो लोग स्क्रीन का इस्तेमाल दिन में 2 घंटे से ज्यादा करते हैं, उनमें स्ट्रोक का खतरा ज्यादा होता है। शारीरिक सक्रियता (हफ्ते के सातों दिन एक घंटे की वॉक) इस असर को कम करती है। यहां तक कि स्क्रीन के ज्यादा इस्तेमाल से कैंसर का खतरा भी बढ़ता है।स्क्रीन की लत बहुत आसानी से लग जाती है, जिसका कारण उससे जुड़ा मनोरंजन है। लोगों के मस्तिष्क में फैसला लेने और प्रेरणा एवं पुरस्कार के बीच लगातार संतुलन बनता रहता है। समय के साथ, इस संतुलन में प्रेरणा और पुरस्कार आगे निकल जाते हैं, जो व्यक्ति के लिए एक लत का कारण बनता है। जब कोई गतिविधि आनंदमय अनुभव का काम करती है, तो ऐसे में मस्तिष्क में डोपामाइन नाम के रसायन की मात्रा बढ़ती है। एक बार जब व्यक्ति स्क्रीन का आदी हो जाता है, तो उसे पसंदीदा खाना, परिवार और छुट्टियों से पहले जैसी खुशी मिल ही नहीं पाती है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि अब डोपामाइन का स्तर केवल तभी बढ़ेगा जब व्यक्ति का मस्तिष्क मिल रहे अनुभव से पूरी तरह संतुष्ट होगा, जो अब केवल स्क्रीन के साथ ही संभव होगा।

दो घंटों के बाद, स्क्रीन पर बिताया गया हर घंटा स्ट्रोक के खतरे को 20 प्रतिशत तक बढ़ाता है, जो युवाओं के बीच स्ट्रोक का एक आम कारण बना हुआ है। स्क्रीन का समय कम कैसे किया जा सकता है? शोधकर्ताओं ने पाया है कि, स्क्रीन के इस्तेमाल के दौरान हर 20 मिनट में 2-5 मिनट की शारीरिक गतिविधि डायबिटीज और मोटापे के खतरे को कम करती है। सोने जा रहे हैं तो नीली लाइट छोड़ने वाले उपकरणों का इस्तेमाल करने से बचें। ये लाइट मेलाटोनिन नाम के रसायन को कम करती है। यह रसायन व्यक्ति को सोने में मदद करता है। रात में ऐसे उपकरण इस्तेमाल करने से समय पर नींद नहीं आती है, परिणामस्वरूप स्ट्रोक का खतरा बढता है। अध्ध्यन का निष्कर्ष यह निकलता है कि, 2 साल के बच्चों को किसी भी प्रकार की स्क्रीन से पूरी तरह से दूर रखना चाहिए। वहीं 16 से अधिक उम्र के लोगों को दिन में केवल 2 घंटों के लिए ही स्क्रीन का इस्तेमाल करना चाहिए। ऐसा कर के ही स्ट्रोक के खतरे को कम करना संभव है।

युवा आबादी में स्ट्रोक का खतरा

स्ट्रोक के अन्य मुख्य कारणों के अलावा, शारीरिक गतिहीनता भी कम उम्र में स्ट्रोक का कारण बनता है। नियमित रूप से किया गया व्यायाम न सिर्फ समग्र स्वास्थ्य को बनाए रखने में सहायक होता है, बल्कि शरीर को कई बीमारियों से दूर रखता है। स्ट्रोक को बढ़ावा देने वाली अन्य बीमारियों में उच्च रक्तचाप, डायबिटीज और हाई कोलेस्ट्रॉल शामिल है। उच्च-रक्तचाप स्ट्रोक के सबसे बड़े कारणों में से एक है, जो इस्केमिक स्ट्रोक (ब्लॉकेज के कारण) और हेमरेज स्ट्रोक (मस्तिष्क में ब्लीडिंग) के 50 प्रतिशत मामलों के लिए जिम्मेदार माना जाता है। नियमित एक्सरसाइज ब्लड प्रेशर को संतुलित करने में मदद करती है, जिसके साथ स्ट्रोक का खतरा 80 प्रतिशत तक कम हो जाता है। यह तो स्पष्ट है कि, डायबिटीज के मरीजों में स्ट्रोक का दुगना खतरा होता है। ऐसा इसलिए है क्योंकि शरीर में ज्यादा शुगर सभी बड़ी रक्त वाहिकाओं को नष्ट कर देता है, जो इस्केमिक स्ट्रोक का कारण बनता है। नियमित व्यायाम न सिर्फ शुगर के स्तर को कम करता है बल्कि उनमें स्ट्रोक के खतरे को भी कम करता है। हाई कोलेस्ट्रॉल भी स्ट्रोक के मुख्य कारणों में गिना जाता है। खराब कोलेस्ट्रॉल की अधिक मात्रा धमनियों में परत के खतरे को बढ़ाती है, जो आगे चलकर क्लॉट का कारण बनता है। यह क्लॉट रक्त प्रवाह को बाधित करता है, जो स्ट्रोक का कारण बनता है। एक्सरसाइज में कमी शरीर के साथ मस्तिष्क पर भी बुरा असर डालता है। नियमित व्यायाम और संतुलित आहार के साथ शरीर में खराब कोलेस्ट्रॉल को कम करके अच्छे कोलेस्ट्रॉल को बढ़ाया जा सकता है।

 स्ट्रोक का इलाज संभव है

 समय पर इलाज के साथ, स्ट्रोक के मरीज को ठीक करना संभव है। लगभग 70 प्रतिशत मामलों में इसके लक्षणों को कम या पूरी तरह खत्म किया जा सकता है। सही इलाज में एक मिनट की देरी भी मस्तिष्क की 20 लाख कोशिकाओं को नष्ट कर देती है, इसलिए समय पर इलाज कराना आवश्यक है। स्ट्रोक के उचित इलाज के लिए मरीज को अटैक के 6 घंटों के अंतरगत अस्पताल लाना जरूरी है। इसके बाद लगभग 80 प्रतिशत मामलों में मरीज विकलांगता का शिकार बनता है। हालिया प्रगति और इमेजिंग तकनीकों के साथ, अब स्ट्रोक के सफल इलाज के लिए अटैक के पहले 24 घंटे बेहद जरूरी माने जाते हैं। स्ट्रोक का इलाज संभव है और विश्व स्ट्रेक दिवस (29 अक्टूबर) को हम लोगों तक यही मैसेज पहुंचाना चाहते हैं। स्ट्रोक की शुरुआती पहचान इलाज को आसान और परिणामों बेहतर कर देती है। हम लोगों को स्ट्रोक के लक्षणों की पहचान करने के लिए प्रेरित करते हैं। इसके लक्षणों को फास्ट कहा जाता है, यानी कि उतरा हुआ चेहरा, हाथों में कमजोरी, बोलने में मुश्किल और एंबुलेंस को बुलाने का समय शामिल हैं। टेक्नोलॉजी और विशेषज्ञता में प्रगति के साथ, मस्तिष्क की रक्त वाहिकाओं को मिनिमली इनवेसिव न्यूरो-इंटरवेंशन तकनीक की मदद से फिर से सही किया जा सकता है।

 

-डॉ. विपुल गुप्ता

डायरेक्टर अग्रिम इंस्टीट्यूट ऑफ  न्यूरोसाइंसेस

आर्टेमिस हॉस्पिटल, गुरुग्राम

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