कोरोना के साथ ही प्रदूषण की वजह से सांस के मरीजों पर क्या असर देखने को मिला है?
कोरोना एक सांस संबंधी बीमारी है और वहीं प्रदूषण के कारण भी सांस पर बुरा प्रभाव पड़ता है। ऐसे में यदि मरीज कोरोना पॉजिटव है और समस्या गंभीर है तो इसमें कहीं न कहीं प्रदूषण का भी योगदान होता है। हालांकि, कोरोना की शुरुआत में भी मरीजों को सांस की समस्या होती थी लेकिन अगर हम पिछले कुछ दिनों की बात करें, तो अब कोरोना के मरीजों में सांस की ज्यादा परेशानी देखने को मिल रही है। मरीज सांस की समस्या से गंभीर रूप से प्रभावित हो रहे हैं। अस्थमा या सीओपीडी के मरीजों में भी सांस की समस्या पहले के मुकाबले ज्यादा गंभीर पाई गई है। इसका सबसे बड़ा कारण प्रदूषण है।
ओपीडी में पहले के मुकाबले कितने मरीज आ रहे हैं?
लॉकडाउन के दौरान मरीजों की संख्या कम हो गई थी लेकिन जैसे ही प्रदूषण का स्तर बढ़ा, धीरे-धीरे मरीजों की संख्या फिर से बढ़ने लगी है। हालांकि, कोरोना के डर से लोग अस्पताल या ओपीडी आने की बजाय वीडियो कंसल्टेशन में ज्यादा विश्वास रखते हैं। लेकिन जब बात प्रदूषण की आती है तो सांस की समस्या से गंभीर रूप से ग्रस्त मरीजों को अस्पताल आना ही पड़ता है, जिसकी वजह से ओपीडी में बड़ी संख्या में मरीज परामर्श के लिए आ रहे हैं।
सीनियर सिटीजन और बच्चों को क्या-क्या सावधानी बरतने की जरूरत है?
इस परिस्थिति में सबसे पहले लोगों को कोरोना से सावधान रहने की आवश्यकता है, जैसे कि मास्क लगाना, सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करना, सैनिटाइजर का इस्तेमाल करना, साफ-सफाई रखना आदि। ये सभी चीजें न सिर्फ कोरोना से बल्कि प्रदूषण व बदलते मौसम के कारण होने वाली समस्याओं से भी हमारा बचाव करती हैं। इसके अलावा, बच्चों और बुजुर्गों को खासतौर पर सुबह-शाम घर से बिल्कुल नहीं निलकना चाहिए क्योंकि इस वक्त प्रदूषण बहुत ज्यादा होता है। एक्सरसाइज भी करना हो तो धूप निकलने के बाद ही करें। ज्यादा से ज्यादा पानी पिएं, ताज़े फल और सब्जियां खाएं।
- डॉक्टर आशीष जैन, वरिष्ठ सलाहकार, पल्मोनोलॉजी, मैक्स मल्टी-स्पेशलिटी सेंटर, नोएडा