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भारत में ब्रेस्ट कैंसर के बढ़ते मामलों के बीच शुरुआती डायग्नोसिस ही स्वस्थ जीवन का मूलमंत्र है

सब केटगॉरी : स्वास्थ्य  Feb,16,2021 03:26:03 PM
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भारत में ब्रेस्ट कैंसर के बढ़ते मामलों के बीच शुरुआती डायग्नोसिस ही स्वस्थ जीवन का मूलमंत्र है

पिछले एक दशक में ब्रेस्ट कैंसर के मामलों में तेजी होने के बावजूद जागरूकता, सुलभ इलाज और कैंसर केयर के बदलते मानदंडों के कारण मृत्युदर में बहुत हद तक कमी आई है। हालांकि दुनिया में किसी तरह के कैंसर में ब्रेस्ट कैंसर से पीड़ित मरीजों की मृत्यु संख्या अभी भी सबसे ज्यादा है। ग्लोबेकैन 2018 के हालिया आंकड़ों के मुताबिक, भारतीय महिलाओं में ब्रेस्ट कैंसर के मामले दुनिया में सबसे ज्यादा हैं। नए कैंसर मरीजों की संख्या तेजी से बढ़ी है और नए मरीजों का आयुवर्ग 55 वर्ष से अधिक से घटकर सालाना 40 वर्ष नीचे तक पहुंच गया है। आईसीएमआर 2018 में दर्ज आंकड़ों के मुताबिक, भारत में पिछले साल ब्रेस्ट कैंसर के नए मरीज 1.5 लाख से अधिक दर्ज किए गए हैं।

रिपोर्ट के मुताबिक, हर 28 महिलाओं में एक महिला ब्रेस्ट कैंसर से पीड़ित है। हालांकि ग्रामीण क्षेत्रों की 60 में से एक महिला इससे पीड़ित है जो शहरी क्षेत्रों के मुकाबले बहुत कम है जहां 22 में से एक महिला इससे पीड़ित होती है। कैंसर पनपने में आनुवांशिक और पैतृक पक्ष की अहम भूमिका होती है, वहीं किसी आयुवर्ग की महिला में इसका खतरा रहता है और उम्र बढ़ने के साथ यह खतरा भी बढ़ता है। ब्रेस्ट कैंसर के मामले हालांकि किसी भी व्यक्ति को प्रभावित कर सकते हैं लेकिन पुरुषों के मुकाबले महिलाओं में कैंसर का खतरा ज्यादा रहता है। पुरुषों में ब्रेस्ट कैंसर के मामले ब्रेस्ट कैंसर के सभी मामलों में सिर्फ एक फीसदी है।  

शुरुआती लक्षण क्या हैं?

युवतियों (40 साल से कम) में ब्रेस्ट कैंसर की पहचान करना मुश्किल होता है क्योंकि बुजुर्ग महिलाओं की तुलना में युवतियों में टिश्यू ज्यादा घने होते हैं। समय के साथ जैसे—जैसे गांठ से लक्षण लगातार उभरने शुरू होते हैं, तब तक ट्यूमर एडवांस स्टेज में पहुंच चुका होता है और यह बड़ी तेजी से बढ़ने लगता है। ऐसी स्थिति तक पहुंचने पर इलाज का बहुत कम लाभ मिलने की संभावना रह जाती है। लिहाजा इस तरह की समस्याओं के प्रति सजग रहना और सावधानी के उपाय अपनाने के लिए किसी डॉक्टर से लगातार सलाह लेना ही बुद्धिमानी है। इसके लक्षणों में शामिल हैं:

• आकार और स्वरूप में तुलनात्मक बदलाव।
 
• ब्रेस्ट के अन्य हिस्सों की तुलना में गांठ वाला हिस्सा मोटा महसूस होता है।

• त्वचा की संरचना में बदलाव नजर आता है, मसलन गड्ढे हो जाना।

• निप्पल के आकार में बदलाव के साथ ही उसके आसपास लाल हो जाता है।
 
• ब्रेस्ट में दर्द और कांख में सूजन होने लगता है।

• निप्पल से द्रव का रिसाव होने लगता है।


ब्रेस्ट कैंसर का इलाज में आई हाल की तरक्की के कारण ब्रेस्ट कैंसर के मरीजों की संख्या और मृत्यु दर में कमी आई है। ट्यूमर के स्टेज और आकार के मुताबिक डॉक्टर निम्नलिखित तरह के इलाज की सलाह दे सकते हैं—

1. सर्जरी -
ब्रेस्ट संरक्षण सर्जरी:  इसमें सर्जरी के जरिये सिर्फ कैंसरयुक्त गांठ यानी ट्यूमर को निकाला जाता है। ट्यूमर के प्रकार, आकार और स्वरूप के आधार पर ल्यूपेक्टोमी (आसपास के टिश्यू के साथ ट्यूमर निकालना) या पार्शियल मस्टेक्टोमी जैसी सर्जरी निर्भर करती है। आम तौर पर सर्जरी के बाद बचे—खुचे कैंसर सेल को खत्म करने के लिए रेडियोथेरापी प्रक्रिया उतनी ही सफल होती है जितनी शुरुआती चरण के ब्रेस्ट कैंसर के इलाज में संपूर्ण मस्टेक्टॉमी सफल होती है।

मस्टेक्टोमी: इसमें सर्जरी के जरिये पूरी ब्रेस्ट काट दी जाती है। विज्ञान और तकनीकी की तरक्की के कारण मस्टेक्टोमी के बाद रिकंस्ट्रक्टिव सर्जरी कराई जा सकती है जिसमें निकाली गई ब्रेस्ट की जगह उभार लाया जाता है। मस्टेक्टोमी (तुरंत रिकंस्ट्रक्शन) के साथ ही या बाद में  रिकंस्ट्रक्शन प्रक्रिया अपनाई जा सकती है। इसे या तो ब्रेस्ट प्रत्यारोपण के जरिये या नया ब्रेस्ट बनाने के लिए शरीर के दूसरे हिस्से से टिश्यू का इस्तेमाल कर पूरा किया जा सकता है। 

2. रेडियेशन थेरापी— रेडियेशन थेरापी में कैंसरयुक्त कोशिकाओं को खत्म करने के लिए हाई—पावर रेडियेशन बीम का इस्तेमाल किया जाता है। ज्यादातर रेडियेशन चिकित्सा में एक्सटर्नल बीम रेडियेशन का इस्तेमाल किया जाता है। इस तकनीक के तहत शरीर के बाहरी हिस्से पर बड़े आकार की मशीन इस्तेमाल की जाती है।

3. कीमोथेरापी— कीमोथेरापी में दवा के जरिये कैंसर कोशिकाओं को खत्म किया जाता है। कुछ मामलों में सर्जरी के पहले ही मरीज को कीमोथेरापी दे दी जाती है। इस उपचार का उद्देश्य ट्यूमर को सिकुड़ने देना होता है। इससे बड़ी सर्जरी की जरूरत नहीं रह जाती है। कीमोथेरापी के कई अवांछित साइड इफेक्ट्स भी होते हैं। यह उपचार कराने से पहले आप इस बारे में अपने डॉक्टर से विस्तारपूर्वक जानकारी ले सकते हैं।

4. हार्मोन थेरापी— यदि किसी को हार्मोन के प्रति संवेदनशील ब्रेस्ट कैंसर है तो डॉक्टर उसकी हार्मोन थेरापी शुरू कर सकते हैं। ब्रेस्ट कैंसर के ट्यूमर बढ़ाने के लिए दो फीमेल हार्मोन— एस्ट्रोजेन और प्रोगेस्टेरोन जिम्मेदार होते हैं। हार्मोन थेरापी आपके शरीर में इन्हीं हार्मोन के उत्पादन को रोकने का काम करती है या कैंसर सेल्स पर हार्मोन रिसेप्टर्स को रोकने का काम करती है। इस प्रक्रिया से आपके कैंसर के बढ़ने की गति धीमी या संभवतया रुक जाती है।

5. टार्गेटेड मेडिकेशन— इस उपचार प्रक्रिया से असामान्य होने वाली या परिवर्तित होने वाली कैंसर कोशिकाओं पर हमला किया जाता है। मसलन, हर्सेप्टिन (ट्रेस्टुजुमैब) शरीर में एचईआर2 प्रोटीन बनने से रोकने में मदद कर सकती है। एचईआर2 ब्रेस्ट कैंसर कोशिकाओं को विकसित होने में मदद करता है इसलिए इस प्रोटीन के बनने की प्रक्रिया धीमी करने वाली दवाई कैंसर के विकास को रोकने में भी मदद कर सकती है।

-डॉ. निरंजन नाइक, निदेशक, सर्जिकल आॅन्कोलॉजी, फोर्टिस मेमोरियल रिसर्च इंस्टीट्यूट, गुरुग्राम

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