मेरठ, 22 मार्च, 2021 : लाखों लोगों में इंटरस्टिशियल फेफड़ा रोग (आईएलडी) की डायग्नोसिस हो रही है जो फेफड़े संबंधी बीमारियों के बढ़ते मामलों का प्रत्यक्ष प्रमाण है। ट्यूबरकुलोसिस यानी क्षयरोग का बचाव और इलाज संभव है, इसके बावजूद भारत में दस बड़ी जानलेवा बीमारियों में इसका स्थान है। इसके बढ़ते मामलों पर काबू पाने और जान पर खतरा बनने वाले इस रोग के बचाव के लिए जागरूकता बढ़ाना ही सबसे महत्वपूर्ण उपाय है। इसी को ध्यान में रखते हुए उत्तर मैक्स सुपर स्पेशियल्टी हॉस्पिटल, वैशाली ने मेरठ में अपनी विशेष ओपीडी सेवा का शुभारंभ कर वहां के लोगों तक अपनी सेवा का विस्तार किया है। आज मैक्स हॉस्पिटल वैशाली द्वारा निशुल्क स्वास्थ्य जाँच शिविर का आयोजन किया गया जिसमें 200 से अधिक लोगो का ब्लड प्रेशर,शुगर टेस्ट और पल्मोनरी फंक्शन टेस्ट की जाँच डॉक्टर द्वारा की गई।
यह ओपीडी सेवा मेरठ के श्री डायग्नोस्टिक्स स्थित मैक्स पेशेंट असिस्टेंस सेंटर में हर महीने के पहले और तीसरे गुरुवार को उपलब्ध रहेगी जहां पल्मोनरी संबंधी बीमारियों की टर्शियरी देखभाल और थोरैसिस सर्जरी पर विशेष ध्यान दिया जाएगा। टर्शियरी केयर संबंधी परामर्श देने के लिए मैक्स हॉस्पिटल के डॉक्टर यहीं उपलब्ध रहेंगे क्योंकि महामारी और लॉकडाउन के कारण ज्यादातर मरीज दूरदराज जाकर विशेषज्ञों की राय लेना टाल देते हैं।
मैक्स हॉस्पिटल, वैशाली में पल्मनोलॉजी के प्रमुख कंसल्टेंट डॉ. शरद जोशी ने कहा, 'आज के युग में अच्छी सेहत बनाए रखना सबसे बड़ी चुनौती है। खानपान, प्रदूषण, लाइफस्टाइल, बैक्टीरिया, वायरस जैसी हर चीज अच्छी सेहत की दुश्मन बनी हुई है। कोविड के दौरान अच्छी सेहत का ख्याल रखना कहीं ज्यादा मुश्किल हो गया है। फेफड़े हमारे सबसे संवेदनशील अंग हैं और बहुत जल्दी संक्रमित हो जाते हैं। लॉकडाउन के कारण कहीं आने—जाने पर पाबंदी, सड़कों पर प्रतिबंध आदि के कारण बेहतर स्वास्थ्य सेवा हासिल करना अधिक चुनौतीपूर्ण रहा। लिहाजा मरीजों तक पहुंच बनाने और उन्हें टर्शियरी स्तर की स्वास्थ्य सुविधा मुहैया कराने के लिए मैक्स सुपर स्पेशियल्टी हॉस्पिटल के पल्मनोलॉजिस्टों की टीम ने मेरठ में एक सैटेलाइट चेस्ट क्लिनिक शुरू किया है। हम मेरठ में नियमित रूप से आते रहेंगे और सांस संबंधी परेशानियों से जूझ रहे मरीजों की मदद करेंगे।'
विश्व में होने वाली मौत के लिए जिम्मेदार 10 बीमारियों में अभी भी टीबी का स्थान है। यह जानते हुए भी कि इस बीमारी का इलाज संभव है और इससे बचा जा सकता है, एक अनुमान के मुताबिक, वैश्विक स्तर पर 2019 में एक लाख लोग टीबी की चपेट में आ गए और इससे लगभग 12 लाख लोगों की मौत हो गई। इसके अलावा एचआईवी—टीबी के दोहरे संक्रमण से दो लाख लोगों की मौत हुई। दुनियाभर में टीबी के मामलों का 25 फीसदी भारत में ही है और एमडीआर/आर—आर टीबी के सभी मामलों में से 27 फीसदी मामले हमारे देश में ही हैं (विश्व में यह सर्वाधिक है)।
टीबी का इलाज और बचाव संभव है, बशर्ते कि इसकी शुरुआती पहचान करा ली जाए और उचित इलाज शुरू किया जाए। इससे कई लोगों की जान भी बच सकती है और परिवारों का खर्च भी बच सकता है। कोविड 19 के मामले की तरह ही इस बीमारी को असाध्य मान लेने या छिपाने से बड़ी तबाही मच सकती है। कई सारी प्रतिकूल परिस्थितियों के बावजूद सरकार जन स्वास्थ्य लक्ष्य पाने के लिए प्रतिबद्ध है और सभी डॉट्स सेंटरों, डॉट्स— प्लस सेंटरों तथा सरकारी अस्पतालों में नि:शुल्क इलाज मुहैया करा रही है।
मैक्स हॉस्पिटल, वैशाली में पल्मनोलॉजी के कंसल्टेंट डॉ. पुनीत गुप्ता ने कहा, 'क्षयरोग देश में खतरनाक स्तर पर पहुंच गया है। सरकारी और निजी अस्पतालों में इसे रोकने के पर्याप्त प्रयास होने चाहिए। लिहाजा उन इलाकों में लोगों को स्वास्थ्य शिक्षा देना जरूरी है जहां उन्हें इस बीमारी के बारे में जानकारी नहीं है और गलत इलाज कराते हैं। टीबी पर काबू पाने के लिए इसकी डायग्नोसिस और दवाई भी उतना ही जरूरी है। स्वास्थ्य सेवा प्रोफेशनल और स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं को इस जानलेवा महामारी से मरीजों को बचाने के लिए कुछ प्रभावी कदम उठाने होंगे।'