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गंभीर पीलिया से पीड़ित 30 वर्षीया मरीज की जान बचाई

सब केटगॉरी : स्वास्थ्य  Apr,06,2021 04:23:22 PM
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गंभीर पीलिया से पीड़ित 30 वर्षीया मरीज की जान बचाई

नोएडा। 30 वर्षीया गीतिका (परिवर्तित नाम) कॉमन बाइल डक्ट (सीबीडी) के बुरी तरह संकीर्ण हो जाने के कारण अत्यंत गंभीर जॉन्डिस (लेवल 23) से पीड़ित थी। इस वजह से आंत तक उसके पित्त (डायजेस्टिव एंजाइम) जाने का रास्ता बंद हो गया था। लेकिन यथार्थ सुपर स्पेशियल्टी हॉस्पिटल, ग्रेटर नोएडा के डॉक्टर ने उसका सफल आॅपरेशन कर उसे स्वस्थ कर दिया।

मरीज को इमरजेंसी में बहुत गंभीर स्थिति में लाया गया था और उसे तत्काल चिकित्सा सहायता की जरूरत थी। विस्तृत जांच से पता चला कि उसके सीबीडी (जिसमें गॉल ब्लाडर से छोटी आंत तक पित्त पहुंचाने में मदद मिलती है) का सबसे ऊपरी हिस्सा बहुत संकीर्ण हो गया है। चूंकि पित्त का प्रवाह अवरुद्ध हो गया था इसलिए बिलरूबिन का स्तर बहुत ज्यादा बढ़ गया था और इस वजह से हाइपरबिलरूबिनेमिया (पीलिया) बहुत खतरनाक स्तर पर पहुंच चुका था।

इतने उच्च स्तर पर जॉन्डिस होने का संभावित कारण सीबीडी के शायद जख्मी हो जाने या कैंसर हो जाने को माना जाता है। बीमारी की असल वजह पहचानने के लिए डॉक्टरों की टीम ने मरीज के पुराने चिकित्सीय इतिहास को भी खंगाला। मरीज का पिछले साल कोलेसिस्टेक्टोमी (सर्जरी के जरिये गॉल ब्लाडर निकालना) हो चुका था, जो शायद उसकी मौजूदा स्थिति के लिए प्रमुख या जिम्मेदार कारण हो सकता था। इस सर्जरी में कॉमन बाइल डक्ट के जखमी (अनइंटेस्टाइनल) होने की संभावना रहती है और एक साल में हो सकता है कि यह धीरे—धीरे संकीर्ण होता गया। इस वजह से उसका लीवर गंभीर पर सूज गया था और समय की साथ मरीज की स्थिति बिगड़ती चली गई थी। लिहाजा उसे तत्काल सर्जरी कराने की सलाह दी गई।

डॉ. नीरज के नेतृत्व में सर्जिकल गैस्ट्रोइंटरोलॉजी विभाग के डॉक्टरों की विशेष टीम ने मरीज की विस्तृत जांच—पड़ताल की। निष्कर्ष निकाला गया कि मरीज को तत्काल हिपाटिकोजेज्यूनोस्टोमी की जरूरत है, जो संकीर्ण सीबीडी से सीधा छोटी आंत तक पहुंचने के लिए एक कृत्रिम बायपास की एक सर्जिकल प्रक्रिया होती है।

यथार्थ सुपर स्पेशियल्टी हॉस्पिटल, ग्रेटर नोएडा में सीनियर कंसल्टेंट और गैस्टोइंटेस्टाइनल, एचपीबी, मिनिमली इनवेसिव सर्जरी तथा लीवर ट्रांसप्लांट के प्रमुख डॉ. नीरज ने कहा, 'मरीज को सर्जिकल प्रक्रिया के लिए तैयार किया गया। हाई—रिस्क प्रक्रिया होने और मरीज की बदतर होती स्थिति के बावजूद संकीर्ण हिस्से को सावधानीपूर्वक निकाल लिया गया और पित्त के छोटी आंत तक पहुंचने का सीधा रास्ता बनाने के लिए कृत्रिम बायपास किया गया। मरीज को 5 दिन तक आईसीयू में सघन चिकित्सा निगरानी में रखा गया और जब वह पूरी तरह ठीक हो गई तो सर्जरी के छठे दिन ही उसे छुट्टी दे दी गई। आॅपरेशन के बाद वह तेज से स्वस्थ होने लगी और उसमें जॉन्डिस के सभी लक्षण पूरी तरह खत्म हो चुके थे और बिलरूबिन का स्तर भी गिरकर सामान्य हो गया था। मरीज को एक महीने तक डॉक्टर की देखरेख में रहने की सलाह दी गई।'

युवाओं में ऐसे मामले बहुत कम देखे जाते हैं और गीतिका स्वस्थ लाइफस्टाइल भी जी रही थी। मार्च के शुरू में शुरुआती लक्षणों पर गौर करने के बाद गीतिका ने कई प्रमुख अस्पतालों के चक्कर लगाए लेकिन कोई अनुकूल परिणाम नहीं निकला। कोविड के बीच लॉकडाउन के कारण उसे उचित डायग्नोसिस और इलाज पाने में छह महीने लग गए।  


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