चरख़ीदादरी: फोर्टिस मेमोरियल रिसर्च इंस्टीट्यूट, गुरुग्राम के डॉक्टरों ने चरखी दादरी, हरियाणा के 24 वर्षीय अभिषेक शर्मा का सफल इलाज कर उसे नया जीवन दिया। वह गंभीर एप्लास्टिक एनीमिया से पीड़ित था जिसमें बोन मैरो काम करना बंद कर देता है और इसके लिए कोई सटीक दवा भी अभी तक उपलब्ध नहीं है। मरीज को बुखार, हीमोग्लोबिन का निम्न स्तर, रक्तस्राव और कम प्लेटलेट की शिकायत के बाद फोर्टिस गुरुगाम में लाया गया था। अस्पताल में हीमेटोलॉजी एंड बीएमटी विभाग के प्रमुख निदेशक डॉ. राहुल भार्गव और फोर्टिस मेमोरियल रिसर्च इंस्टीट्यूट में ही हीमेटोलॉजी एंड बीएमटी विभाग के कंसल्टेंट डॉ. मीत कुमार के नेतृत्व में डॉक्टरों की टीम ने मरीज में बोन मैरो का सफल प्रत्यारोपण किया।
मरीज को फरवरी में बहुत तेज बुखार आया था और उसने दादरी के ही एक डॉक्टर से संपर्क किया था। यहां डॉक्टरों ने तत्काल भांप लिया कि मरीज का प्लेटलेट बहुत कम है। तब मरीज को भिवानी के एक डॉक्टर से दिखाया गया, जहां फिर से ब्लड टेस्ट हुआ और हिसार में डॉक्टरों से तीसरी बार परामर्श लेने को कहा गया। यहां मरीज की डायग्नोसिस से पुष्टि हो गई कि वह एप्लास्टिक एनीमिया से पीड़ित है तो उसे फोर्टिस गुरुग्राम भेजा गया। हरियाणा में बोन मैरो ट्रांसप्लांट के लिए यह एक अत्याधुनिक केंद्र है। बोन बोन ट्रांसप्लांट की खातिर मैच करने के लिए मरीज के भाई—बहन का भी ब्लड टेस्ट किया गया। बहन का 80 फीसदी खून मिला जबकि भाई का 100 फीसदी मिल गया। मरीज के लिए 16 वर्षीय भाई को उचित डोनर पाया गया। अप्रैल 2021 में मरीज का सफल बोन मैरो प्रत्यारोपण हो गया और अब वह पूरी तरह स्वस्थ है।
डॉ. राहुल भार्गव ने बताया, 'एप्लास्टिक एनीमिया पूर्ण रूप से के डिसआॅर्डर है और इस मरीज को नियमित रूप से खून चढ़ाने की जरूरत थी। एप्लास्टिक एनीमिया के कारण मरीज थकान महसूस करता रहता है और उसे संक्रमण का सर्वाधिक खतरा रहता है जबकि अनियंत्रित रक्तस्राव भी होता रहता है। एप्लास्टिक एनीमिया का इलाज दवाइयों और खून चढ़ाने से होता है जिसमें सिर्फ स्टेम सेल का प्रत्यारोपण होता है जिसे बोन मैरो ट्रांसप्लांट कहा जाता है।'
डॉ. मीत कुमार ने बताया, 'एप्लास्टिक एनीमिया की डायग्नोसिस बहुत मुश्किल है और सही समय पर डायग्नोसिस सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है। दूसरा, जब डायग्नोसिस हो जाती है तो मरीज को इस बीमारी से निजात दिलाने के लिए बोन मैरो ट्रांसप्लांट के अलावा कोई कारगर इलाज नहीं है। इस प्रक्रिया में शरीर से बीएमटी, आरबीसी, डब्ल्यूबीसी तथा प्लेटलेट निकाली जाती है। इस बीमारी में मरीज एक नवजात की तरह हो जाता है जिसे संक्रमण का सर्वाधिक खतरा रहता है। ऐसी स्थिति में मरीज की स्थिति सुधारना बड़ी चुनौती होती है। अलग—अलग लोगों के स्टेम सेल्स को मरीज के शरीर में डाला जाता है और सफल प्रत्यारोपण के लिए मरीज की स्वीकार्यता जरूरी होती है। दानकर्ता के लिए कोई खतरा नहीं रहता है। दानकर्ता को सिर्फ 300 मिली ब्लड स्टेम सेल देना पड़ता है और इसमें डरने की कोई बात नहीं होती है। इस मरीज को प्रत्यारोपण के अगले ही दिन अस्पताल से छुट्टी मिल गई और अब वह सामान्य जीवन जी रहा है।'
मरीज अभिषेक ने बताया, 'जब मुझे एप्लास्टिक एनीमिया का पता चला तो मुझे जोर का झटका लगा। मुझे इस बीमारी से संबंधित कभी कोई लक्षण नहीं था। जब मुझे फोर्टिस लाया गया तो इस बीमारी से मुक्ति पाने के बारे में मुझे बहुत कम जानकारी थी कि इसका इलाज बोन मैरो ट्रांसप्लांट से किया जाता है। मैं अपने परिवारवालों का आभारी हूं कि वे तत्काल प्लेटलेट दान करने के लिए आगे आए। मेरे भाई का खून पूर्ण रूप से मिलता था और प्रत्यारोपण के बाद उसे भी अगले दिन ही छुट्टी मिल गई। प्रत्यारोपण के बाद भाई के साथ मेरी आत्मीयता और गहरी हो गई। मैं सभी डॉक्टरों, खासकर डॉ. मीत का विशेष आभार व्यक्त करना चाहता हूं कि उन्होंने मुझे नई जिंदगी दी।