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जागरूकता के अभाव के कारण भारतीयों में क्रोनिक किडनी रोग के मामले बढ़ रहे हैं

सब केटगॉरी : स्वास्थ्य  Mar,21,2022 01:23:14 PM
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जागरूकता के अभाव के कारण भारतीयों में क्रोनिक किडनी रोग के मामले बढ़ रहे हैं

रोहतक : क्रोनिक किडनी डिजीज (सीकेडी) के कारण किडनी खराब होने के तेजी से बढ़ते मामलों को देखते हुए लोगों में इससे जुड़ी जानकारी का होना बहुत जरूरी है लिहाजा मैक्स हॉस्पिटल, शालीमार बाग ने आज इससे जुड़ा एक जन जागरूकता सत्र का आयोजन किया।

पिछले एक दशक में सीकेडी से पीड़ित मरीजों की संख्या लगभग दोगुनी हो गई है और यह लगातार तेजी से बढ़ रही है। भारत में किडनी रोग बढ़ने वाले कारकों में डायबिटीज और हाइपरटेंशन प्रमुख वजह है जिस कारण सीकेडी के 60 फीसदी से ज्यादा मामले बढ़े हैं और जिस खतरनाक तेजी से यह बढ़ रहा है उससे लगता है कि इन मामलों का विस्तार और तेजी से होगा। किडनी खराब होना या क्रोनिक किडनी डिजीज (सीकेडी) एक प्रगतिशील रोग है जो रक्त से अपशिष्ट और विषाक्त पदार्थों को छानने में किडनी असमर्थ रहने के कुछ समय बाद इस स्थिति तक पहुंच जाती है।

हालांकि इस स्थिति तक पहुंच जाने का इलाज नहीं है लेकिन सही समय पर इसकी पहचान और इलाज कराने से रोग बढ़ने की रफ्तार को धीमा किया जा सकता है।क्रोनिक किडनी रोग के मामलों की शुरुआती चरण में ही डायग्नोज होना चाहिए ताकि सही समय पर इलाज शुरू हो सके और दवाइयों से इस पर प्रभावी नियंत्रण किया जा सके। सही समय पर जांच नहीं होने से ज्यादातर मरीजों को एडवांस्ड स्टेज और इसके बाद के स्टेज में अस्पताल लाया जाता है जहां डायलिसिस या किडनी प्रत्यारोपण ही अंतिम विकल्प रह जाता है।

मैक्स हॉस्पिटल शालीमार बाग में नेफ्रोलॉजी एवं किडनी ट्रांसप्लांट मेडिसिन के प्रमुख कंसल्टेंट डॉ. मनोज अरोड़ा बताते हैं,'ख़राब  हो चुके किडनी वाले मरीजों को प्रत्यारोपण का इंतजार करते हुए डायलिसिस पर रखना होता है और तीन में से एक मरीज को अपने परिवार से अनुकूल दानकर्ता भी नहीं मिल पाता है।

चूंकि एडवांस्ड स्टेज तक पहुंच जाने से पहले ज्यादातर मरीजों में इस रोग के कोई लक्षण नजर नहीं आते हैं, इसलिए इसकी हर साल जांच कराते रहना जरूरी है। मरीज एक बार जब किडनी रोग के आखिरी चरण में पहुंच जाता है तो उसके पास आजीवन डायलिसिस या प्रत्यारोपण ही विकल्प रह जाता है। अलग—अलग अंगों की अलग—अलग प्रत्यारोपण यूनिट के साथ किडनी रोग की संपूर्ण देखभाल की अत्याधुनिक सुविधाओं की उपलब्धता के कारण अत्याधुनिक हीमोडायलिसिस मशीनों के जरिये उच्च श्रेणी की डायलिसिस सेवाएं डायलिसिस पर निर्भर मरीजों के लिए वरदान साबित हुई हैं।

मैक्स हॉस्पिटल शालीमार बाग के विशेषज्ञ एबीओ—इनकंपिटेबल ट्रांसप्लांट और  जीवित और मरणोपरांत व्यक्ति की किडनी करने में अत्यंत अनुभवी हैं। अत्याधुनिक टेक्नोलॉजी के साथ क्वालिटी हेल्थकेयर सुविधाएं देते हुए मैक्स हॉस्पिटल किडनी मरीजों के लिए पसंदीदा टर्शियरी केयर केंद्र के रूप में स्थापित हो चुका है। शुरुआती चरण में इस तरह की स्थितियों की नियमित स्वास्थ्य जांच कराते रहना जरूरी है क्योंकि इससे न सिर्फ मरीज बल्कि समाज पर भी इसका कम से कम वित्तीय बोझ पड़ता है।'

इस रोग के बारे में  जानकारी का अभाव रुग्णता और मृत्यु दर का एक बड़ा कारण है जिस वजह से यह भारत में सबसे कम रिपोर्ट की जाने वाली और सबसे कम पहचानी जाने वाली बीमारी है। लोगों को सही समय पर पहचान कराने के लिए जागरूक होना चाहिए और साथ ही नेफ्रोलॉजी के क्षेत्र में आधुनिक इलाज मॉड्यूल्स के बारे में भी पता होना चाहिए। इससे इस रोग से होने वाली दूसरी बीमारी और मृत्यु दर में कमी लाई जा सकती है।

मैक्स हॉस्पिटल के ही सीनियर कंसल्टेंट डॉ. योगेश छाबड़ा बताते हैं, 'कई ऐसे कारक हैं जिस कारण क्रोनिक किडनी रोगों के मामले बढ़ रहे हैं। इनमें ख़राब  लाइफस्टाइल, अनियंत्रित डायबिटीज, तनावपूर्ण जिंदगी के कारण अनियंत्रित हाइपरटेंशन, और दर्दनिवारक दवाइयों का बेहिसाब इस्तेमाल शामिल हैं। आम लोगों में सावधानी के उपायों, मुख्य लक्षणों आदि के बारे में जागरूकता नहीं होने के कारण यह सब होता है। प्रत्यारोपण के लिए किडनी की उपलब्धता और जरूरत की कमी दूर करने के लिए ब्रेन डेथ और अंग प्रत्यारोपण की जानकारी होने में अभी लंबा समय लगेगा। मरीजों को डायलिसिस पर रखने के मुकाबले किडनी प्रत्यारोपण कराना बेहतर और लंबी आयु पाने का विकल्प होता है। साथ ही लंबे समय के लिए भी प्रत्यारोपण कराना डायलिसिस कराने से सस्ता होता है।'

मैक्स हॉस्पिटल में यूरोलॉजी एंड किडनी ट्रांसप्लांट के निदेशक  और सर्जन डॉ. वाहिद ज़मान  बताते हैं, 'इन दिनों किडनी ट्रांसप्लांट कराना ज्यादा आसान हो गया है और लेपरोस्कोपी तथा रोबोटिक सर्जरी के आविष्कार के कारण अब मरीजों की परेशानियां भी कम हो गई हैं। लगभग एक तिहाई मरीजों को समान ब्लड ग्रुप वाले दानकर्ता परिवार में नहीं मिल पाते हैं। लिहाजा एबीओ—इनकंपैटिबल ट्रांसप्लांटेशन चिकित्सा क्षेत्र की नई मांग हो गई है। रोबोट की सहायता से होने वाली सर्जरी से इंट्रा—आॅपरेटिव परेशानियों का बेहतर ढंग से प्रबंधन हो जाता है और यह अपेक्षाकृत बेहतर तथा सुरक्षित भी है।

 पिछले कुछ वर्षों के दौरान किडनी प्रत्यारोपण और अन्य अंगों के सहयोग में कई तरक्कियां हुई हैं। रोबोट की सहायता से होने वाली किडनी प्रत्यारोपण सर्जरी अत्यंत उपयोगी साबित हुई है क्योंकि इससे तेज रिकवरी, कम दर्द और छोटा कट लगाने के कारण तेजी से जख्म भरने का भी लाभ मिलता है।'

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